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रविवार, 28 फ़रवरी 2010

आओ खेले होली ....................रंजना (रंजू) भाटिया

मस्त बयार बहेरंगों की बौछार चलेरंगे सब तन मनचढ़े अब फागुनी रंगकान्हा की बांसुरी संगभीगे तपते मन की रंगोलीआओ खेले होली .. टूट जाए हर बन्धशब्दों का रचे छंदमहके महुआ की गंधछलके फ्लाश रंगमिटे हर दिल की दूरीआओ खेले होली बहक जाए हर धड़कनखनक जाए हर कंगनबचपन का फिर हो संगहर तरफ छाए रास रंगऐसी सजी फिर मस्तानों की टोलीआओ खेले होली ..कान्हा का रास रसेराधा सी प्रीत सजेनयनो से हो बात अनबोलीआओ खेले होली ....

शनिवार, 27 फ़रवरी 2010

होली के शुभ अवसर पर शुभकामनाएं तथा एक सन्देश

खून की होली मत खेलोप्यार के रंग मे रंग जाओ.जात-पात के रंग न घोलोमानवता मे रंग जाओ.भूख-गरीबी का दहन करोभाई चारे मे रंग जाओ.अहंकार की होली जलाकरविनम्रता मे रंग जाओ.ऊँच-नीच का भेद खत्म करआओ गले से मील जाओ.होली पर्व का यही संदेशादेश प्रेम मे रंग जाओ.प्रस्तुति-- डाo कीर्ति वर...

पिचकारी के तीर------[दोहे]------ डाo श्याम गुप्त

लकुटि लिये सखियाँ खडीं, बदला आज चुकायं .|सुधि बुधि भूलें श्याम जब सम्मुख आ मुसुकायं | १आज न मुरलीधर बचें, राधा मन मुसुकायं|दौड़ी सुध बुध भूलि कर , मुरली दई बजाय ||२ भ्रकुटि तानि बरजे सुमुखि, मन ही मन ललचाय |पिचकारी ते श्याम की,तन मन सब रंगि जाय ||३रंग भरी पिचकारि ते, वे छोड़ें रंग धार |वे घूंघट की ओट ते, करें नैन के वार || ४भरि पिचकारी सखी पर, वे रंग बान चलायं |लौटें नैनन बान भय, स्वयं सखा रंगि जायं ||५गोरे गोरे अंग पर,चटख चढ़े हैं रंग |रंगीले आँचल उड़ें, जैसे नवल पतंग || ६चेहरे सारे पुत गए, चढ़े सयाने रंग |समझ नहीं आवे कछू ,को सजनी को कंत...

शुक्रवार, 26 फ़रवरी 2010

मैं बेफिक्र होकर सोया हुआ था-------[कविता]-------हिमांशु वाजपेयी

मैं बेफिक्र होकर सोया हुआ थातेरे नर्म ख्वाबों में खोया हुआ थाखुदा जाने फ़िर क्या ज़रूरत हुईबिना कुछ कहे तू जो रुखसत हुईमुझे लग रहा था के लौट आएगीइस तरह तू क्यों चली जायेगीमैं पूरा यकीं तुझपे रखता रहामुसलसल तेरी राह तकता रहाअपने मुकद्दर से दम भर लड़ाअब तक उसी मोड़ पर हूँ खड़ादिल में अगर प्यार बाकी रहेफिर चली आना बिना कुछ ...

प्यार का पंरीदा

आज एक परिंदे को, प्यार में तड़फते देखा. उसे प्यार में मरते देखा, और देखा प्यार के लिए जीने की तम्मना. मैंने देखा उसके प्यार को, वह निष्ठुर बना रहा. न समझ पाया परिंदे के प्यार को, और बन बैठा हत्यारा अपने प्यार का. क्या गुनाह किया परिंदे ने, सिर्फ किया तो उसने प्यार था. जी रहा वो हत्यारा पँछी का, आज किसी दूसरे यार संग.  प्रमेन्द्र ...

गुरुवार, 25 फ़रवरी 2010

मेरी रातें-------[कविता]-----चंद्रपाल सिंह

मेरी रातें , मेरा शकुन है, मेरी सुविधा है, मेरी रातें , मेरी रचनात्मकता और सृजनात्मकता की रातें, आलस्य का असीम अवकाश लेकर आती रातें, मैं अँधेरी-उजली रातों में ही जीवित हूँ, शुक्लपक्ष की रातें ,तारो भरी रातें , रातें मेरी वास्तविक जगह है, मेरा पत्ता है, रात के मोर्चे पर ही मेरी तैनाती है, मेरी रातें उन हजारों -लाखों मेहनतकशो के नाम, जो आज भी भूखे पेट सोयें है....

बुधवार, 24 फ़रवरी 2010

अहिंसक सत्याग्रहियों पर हमला

भावनगर 20 फरवरी 2010। गुजरात के भावनगर जिले के महुआ तहसील में हरे-भरे उपजाऊ कृषि जमीन पर प्रस्तावित निरमा सिमेंट फैक्टरी के खिलाफ गांधीवादी स्थानीय विधायक कनू भाई कलसारिया के अगुवाई में मौन जुलूस मार्च कर रही जनता पर निरमा कंपनी के दलालों और पुलिस द्वारा कातिलाना हमला किया गया जिसमें वे और उनकी पत्नी दोनों घायल हैं। हमले में सैकड़ों लोग घायल हुए हैं। और दर्जनों लोगों को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है। निरमा सिमेंट फैक्टरी के खिलाफ चल रहे आंदोलन को प्रख्यात गांधीवादी चुन्नी भाई वैद का समर्थन प्राप्त है।उधर आसाम की राजधानी गुवाहाटी में सर्व सेवा संघ...

हिन्दी का हिंदुस्तान-------[कविता]--------निर्भय जैन

हिंदू हिन्दी हिंदुस्तानक्या है भारत की पहचानपहले राज किया अंग्रेजों नेअब अंग्रेजी के है गुलामदेश की आजादी की खातिरजाने कितनों ने देदी जानहिन्दी को हम भूल रहे हैअंग्रेजी को समझते शानहिन्दी बचाओ के नारे लगाकरचला देते हैं हम अभियानहालत क्या है हिन्दी कीइस ओर नहीं है किसी का ध्यानअब सब कुछ हिन्दी में होगाकहते नेताजी सीना तानख़ुद विदेशी दौरे कर रहेछोड़ रहे है अंग्रेज़ी वाणउर्दू के खातिर जिन्ना नेबना दिया था पकिस्तानऔर हिन्दी को हिंगलिश करके बोल रहा है हिंदुस्तानविनती सुनलो मातृभूमि कीऐ! भारत माँ के वीर जवानहिन्दी दिवस मनाने से हीनहीं बनेगी देश की पहचानहिन्दी...

मंगलवार, 23 फ़रवरी 2010

एक नन्हीं किरण------[कविता]----------सीमा सिंघल 'सदा'

दर्द आजबयां करना चाहता थाअपनी पीड़ा कोजो उसे असहाय कर चली थीजब से वहउसके भीतर पली थीचिंता के साथघुल रही थी उसकी हड्डियां भींउसके रोम छिद्रसिहर उठते उसकी चुभन सेआंसुओ के वेग मेंनिशब्‍द मौन खड़ा वहहोठों को भींचकरदेखता उसकी जड़ता कोहठीली मुस्‍कान पपड़ाये हुये होठों परसफेद धारियों मेंरक्‍त की लालिमा लाकरउसे मन ही मन कुंठित करतीआज पूरे वेग सेवह झटकना चाहता थागुजरना चाहता था हद के परेहताशा और निराशा केपकड़ना चाहता थाआस की एक नन्‍हीं किरणजो इस दर्द का अंत कर सकती...

सोमवार, 22 फ़रवरी 2010

अच्छा लगता है--------[कविता ]------निर्मला कपिला

कभी कभीक्यों रीता साहो जाता है मनउदास सूना साबेचैन अनमना साअमावस के चाँद सीधुँधला जाती रूहसब के होते भीकिसी के ना होने का आभासअजीब सी घुटन सन्नाटाजब कुछ नहीं लुभातातब अच्छा लगता हैकुछ निर्जीव चीज़ों से बतियानाअच्छा लगता हैआँसूओं से रिश्ता बनानाबिस्तर की सलवटों मेदिल के चिथडों को छुपानाऔरबहुत अच्छा लगता हैखुद का खुद के पासलौट आनामेरे ये आँसू मेरा ये बिस्तरमेरी कलम और ये कागज़औरमूक रेत के कणों जैसेकुछ शब्दपलको़ से ले करदो बूँद स्याहीबिखर जाते हैँकागज़ की सूनी पगडंडियों परमेरा साथ निभानेहाँ कितना अच्छा लगता हैकभी खुद काखुद के पास लौट ...

रविवार, 21 फ़रवरी 2010

वजूद------------[कविता]------श्रीश पाठक 'प्रखर'

अब, कितना कठिन हो चला है..कतरा-कतरा कर के पल बिताना.पल दो पल ऐसे हों ,जब काम की खट-पट ना हो..इसके लिए हर पल खटते रहे..बचपन की नैतिक-शिक्षा,जवानी की मजबूरी औरअधेड़पन की जिम्मेदारियों से उपजी सक्रियता ने..एक व्यक्तित्व तो दिया..पर...पल दो पल ठहरकर,उसे महसूसने, जीने की काबलियत ही सोख ली..संतुष्टि ; जैसे आँख मूँद लेने के बाद हीआ पाती हो जैसे.. पलकों परज़माने भर का संस्कार लदा है....बस गिनी-गिनाई झपकी लेता है.पूरी मेहनत, पूरी कीमत का रीचार्ज कूपन ..थोड़ा टॉक टाइम , थोडी वैलिडिटी ..यही जिंदगी है अब, शायदजो एस. एम.एस. बनकर रह जाती है......बिना 'नाम' के...

शनिवार, 20 फ़रवरी 2010

तुम्हारा एक गुमनाम ख़त .........अनिल कांत जी

कभी जो उड़ती थी हवाओं के साथ तेरी जुल्फें तो हवा भी महक जाया करती थीअब तो साँस लेना भी गुनाह सा लगता हैयाद है ना तुम्हे ...जब उस शाम रूमानी मौसम में ....चन्द गिरती बूंदों तले .... और उस पर वो ठंडी ठंडी सर्द हवा .....कैसे तुम्हारी जुल्फें लहरा रही थीं .....सच बहुत खूबसूरत लग रही थीं तुम .... वो बैंच याद है न तुम्हें ....वही उस पार्क के उस मोड़ पर ....जहाँ अक्सर तुम मुझे ले जाकर आइसक्रीम खाने की जिद किया करती थी .....हाँ शायद याद ही होगा ....कितना हँसती थी तुम .....उफ़ तुम्हारी हँसी आज भी मेरे जहन में बसी है ....उस पर से जब तुम जिद किया करती थी .....कि...

उर्मिला की विरह वेदना--------[गीत]--------वंदना गुप्ता

१) प्रियतम हे प्राणप्यारेविदाई की अन्तिम बेला मेंदरस को नैना तरस रहे हैंज्यों चंदा को चकोर तरसे हैआरती का थाल सजा हैप्रेम का दीपक यूँ जला हैज्यों दीपक राग गाया गया हो२) पावस ऋतु भी छा गई हैमेघ मल्हार गा रहे हैंप्रियतम तुमको बुला रहे हैंह्रदय की किवड़िया खडका रहे हैंविरह अगन में दहका रहे हैंकरोड़ों सूर्यों की दाहकताह्रदय को धधका रही हैप्रेम अगन में झुलसा रही हैदेवराज बरसाएं नीर कितना हीफिर भी ना शीतलता आ रही है३) हे प्राणाधारशरद ऋतु भी आ गई हैशरतचंद्र की चंचल चन्द्रकिरण भीप्रिय वियोग में धधकतीअन्तःपुर की ज्वाला कोन हुलसा पा रही हैह्रदय में अगन लगा...

शुक्रवार, 19 फ़रवरी 2010

गीत तुम्हारे मैंने गाये--------[अगीत]-------डाo श्याम गुप्त

गीत तुम्हारे मैंने गाये,अश्रु नयन में भर-भर आये,याद तुम्हारी घिर-घिर आई;गीत नहीं बन पाये मेरे।अब तो तेरी ही सरगम पर,मेरे गीत ढला करते हैं;मेरे ही रस,छंद,भाव सब ,मुझसे ही हो गये परा...

बहुत दिन हुए ........ [कविता]--------------रंजना (रंजू ) भाटिया

एक लम्हा दिल फिर सेउन गलियों में चाहता है घूमनाजहाँ धूल से अटे ....बिन बात के खिलखिलाते हुएकई बरस बिताये थे हमने ..बहुत दिन हुए ...........फिर से हंसी की बरसात काबेमौसम वो सावन नहीं देखा ...बनानी है एक कश्ती कॉपी के पिछले पन्ने से,और पुराने अखबार के टुकडों से..जिन्हें बरसात के पानी में,किसी का नाम लिख कर..बहा दिया करते थे ...बहुत दिन हुए .....गलियों में छपाक करते हुएदिल ने वो भीगना नहीं देखा .....एक बार फिर से बनानी है..टूटी हुई चूड़ियों की वो लड़ियाँ,धूमती हुई वह गोल फिरकियाँ,और रंगने हैं होंठ फिर..रंगीन बर्फ के गोलों...और गाल अपने..गुलाबी बुढ़िया...

गुरुवार, 18 फ़रवरी 2010

जब वो "उफ़" कहा करती है--------[कविता]------नलिन मेहरा

मुस्कुराये जब वो तो सारी कायनात हंसा करती है, पड़े उसके कदम जहाँ वो जगह जन्नत हुआ करती है,दिल के सागर में एहसासों की एक लहर उठा करती है,मेरी बदमाशियों पे जब वो "उफ़" कहा करती हैजो मुड़के देख ले बस एक नज़र तो ज़िन्दगी थमा करती है,उसके हर कदम की आहट पे ऋतुएं बदला करती है,मेरे बिखरे से लफ्जों की ग़ज़ल बना करती है,सुनके मेरे काफिये जब वो "उफ़" कहा करती है,जब भी मिल जाए वो तो खुशियाँ इनायत करती है,अपनी प्यारी बातों से मन को छुआ करती है,मेरी ज़िन्दगी की रहगुज़र को मंजिल मिला करती है,सुनके मेरी दास्तान-ए-ज़िन्दगी जब वो "उफ़" कहा करती है,खुदा ही जाने...

बुधवार, 17 फ़रवरी 2010

दोहे----------------[कवि कुलवंत सिंह]

मधुर प्रीत मन में बसा, जग से कर ले प्यार .जीवन होता सफल है, जग बन जाये यार .मधुर मधुर मदमानिनी, मान मुनव्वल मीत .मंद मंद मोहक महक, मन मोहे मनमीत .आज गुनगुना के गीत, छेड़ो दिल के तार .दिल में घर बसा लो तुम, मुझे बना लो यार .नन्हा मुझे न जानिये, आज भले हूं बीज .प्रस्फुटित हो पनपूंगा, दूंगा आम लजीज .पढ़ लिख कर सच्चा बनो, किसको है इंकार .दुनियादारी सीख लो, जीना गर संसार .संसारी संसारे में, रहे लिप्त संसार .खुद भूला, भूला खुदा, भूले नहि परिवार .फक्कड़ मस्त महान कवि, ऐसे संत कबीर .फटकार लगाई सबको, बात सरल गंभीर .नाम हरी का सब जपो, कहें सदा यह सेठ .ध्यान...

मंगलवार, 16 फ़रवरी 2010

व्यापार बढ़ ही रहा है..लोग बन ही रहे हैं !! - [प्रतीक माहेश्वरी]

कुछ लिखने कि इच्छा तो नहीं थी पर फिर सोचा अच्छा दिन है.. लिखना चाहिए..लिख इसलिए नहीं रहा हूँ कि आज वैलेनटाइन्स डे है... बस कुछ सोच को शब्दों का रूप देने के लिए लिख रहा हूँ..कुछ लोग एक दूसरे को बधाई दे रहे हैं.. इस तरह - स्वतंत्र दिवस मुबारक हो.. अर्थात अकेले हो, खुश हो, आबाद रहो...भैया ये सब तो दुःख छुपाने के टोटके हैं.. अन्दर ही अन्दर कुढ़ते होंगे.. गुदगुदी तो होती ही होगी.. कि काश वो मेरे साथ होती या होता.. पर जनाब छुपाने का पुराना तरीका.. सिंगल...