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बुधवार, 25 मार्च 2009

क्या लिखूँ ऐसे परिवेश में, मैं गजल? (डॉ0 रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)

अब हवाओं में फैला गरल ही गरल।क्या लिखूँ ऐसे परिवेश में गजल।।गन्ध से अब, सुमन की-सुमन है डरा,भाई-चारे में, कितना जहर है भरा,वैद्य ऐसे कहाँ, जो पिलायें सुधा-अब तो हर मर्ज की है, दवा ही अजल।क्या लिखूँ ऐसे परिवेश में गजल।।धर्म की कैद में, कर्म है अध-मरा,हो गयी है प्रदूषित, हमारी धरा,पंक में गन्दगी तो हमेशा रही-अब तो दूषित हुआ जा रहा, गंग-जल।क्या लिखूँ ऐसे परिवेश में गजल।।आम, जामुन जले जा रहे, आग में,विष के पादप पनपने, लगे बाग मे,आज बारूद के, ढेर पर बैठ कर-ढूँढते हैं सभी, प्यार के चार पल।क्या लिखूँ ऐसे परिवेश में गजल।।आओ! शंकर, दयानन्द विष-पान को,शिव...

वर्तमान शिक्षा पद्धति ओर संस्कारहीनता

चाहे कोई भी युग हो,प्रत्येक युग का भविष्य उसकी आगामी पीढ़ी पर ही निर्भर करता है। जिस युग की नई पीढ़ी जितनी अधिक शालीन, सुसंस्कृत, सुघड़ और शिक्षित होती है, उस युग के विकास की संभावनाएं भी उतनी ही अधिक रहती है। राष्ट्र, समाज और परिवार के साथ भी यही सिद्धांत घटित होता है। आज सर्वाधिक महत्वपूर्ण या करणीय कार्य है भावी पीढी को संस्कारित करना। अक्सर सुनने में आता है कि बाल्य मन एक सफेद कागज की भांती होता है। उस पर व्यक्ति जैसे चाहे, वैसे चित्र उकेर सकता...

अलग-अलग त्रिवेनियाँ - एक कविता [ साहित्य मंचीय नये कवि भूतनाथ का परिचय ]

भूतनाथ....जी का वास्तविक नाम राजीव थेपडा । आपकी शिक्षा स्तानक( कला) स्तर तक हुई । आपने फिलहाल व्यापार और अनियमित लेखन (तथा आकाशवाणी में अनियमित नाटक आदि ) को चुना । आप १९८५ से २००० तक लेखन....गायन...अभिनय....निर्देशन....चित्रकारी आदि सभी विद्याओं में अनियमित रूप से सक्रिय....कभी इसमें....कभी उसमें....सैकडों नाटकों एवं कईस्वलिखित व् स्वनिर्देशित नाटकों का मंचन....तथा उनमें ढेरों पुरस्कार....गायन में ढेरों पुरस्कार....अभिनय में कईयों बार बेस्ट ऐक्टर का खिताब,विभिन्न राज्य स्तरीयप्रतियोगिताओं में.....मगर इन सबके बीच घरेलु मोर्चे पर इक अलग ही तरह की...