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गुरुवार, 22 जुलाई 2010

याद आता है.......(कविता).................. सुमन 'मीत'

याद आता हैवो माँ का लोरी सुनानाकल्पना के घोड़े परपरियों के लोक ले जानाचुपके से दबे पांवनींद का आ जानासपनों की दुनियाँ मेंबस खो जाना ...खो जाना...खो जाना.................. याद आता हैवो दोस्तों संग खेलनाझूले पर बैठ करहवा से बातें करनाकोमल उन्मुक्त मन मेंइच्छाओं की उड़ान भरनाबस उड़ते जाना...उड़ते जाना...उड़ते जाना............. याद आता हैवो यौवन का अल्हड़पनसावन की फुहारेंवो महका बसंतसमेट लेना आँचल मेंकई रुमानी ख़ाबझूमना फिज़ाओं संगबस झूमते जाना...झूमते जाना...झूमते जाना............ याद आता हैवो हर गुजरा पलबस याद आता है...याद आता है...याद आता...

सामाजिक सरोकारों का संरक्षण आवश्यक है

सामाजिक सरोकारों का संरक्षण आवश्यक है डॉ0 कुमारेन्द्र सिंह सेंगर================ समाज की व्यवस्था के सुचारू रूप से संचालन के लिए इंसान ने परम्पराओं, मूल्यों, सरोकारों की स्थापना की। समय के सापेक्ष चलती व्यवस्था ने अपने संचालन की दृष्टि से समय-समय पर इनमें बदलाव भी स्वीकार किये। पारिवारिक दृष्टि से, सामाजिक दृष्टि से, आर्थिक दृष्टि से पूर्वकाल से अद्यतन सामाजिक व्यवस्थाएँ बनती बिगड़तीं रहीं। जीवन के सुव्यवस्थित क्रम में मूल्यों के योगदान को नकारा नहीं जा सकता है। मानव विकास का ऐतिहासिक दृश्यावलोकन करें तो ज्ञात होगा कि अकेले-अकेले रहते आ रहे मानव...