कभी खामोश हवा कभी पछियाव कभी पुरवाई अम्मीकभी हलवे कभी ज़र्दे तो कभी चटनी में समाईं अम्मीअपने यहाँ के रिश्तों को मैंने कई बार फटते देखा हैजाने कैसे एक ही पल में कर देती हैं सिलाई अम्मीगिले शिकवों की धूल हटा के प्यार का रंग मिला केजाने कैसे एक ही पल में कर देती हैं रंगाई अम्मीऔर हाँ देखो तो मुझे आसमान छुआने की खातिरचिमटे, संसी, फुँकनी से बाहर निकल आईं अम्मीमैंने आंसुओं से एक परदेसी शहर को भिगो डालाजो मैं उनसे दूर हुआ और जब यादों में हैं आईं अम्मीसंपर्क-शामिख फ़राज़कॉस्मिक डिजीटलकमल्ले चौराहा,पीलीभीत-२६२००१उत्तर प्रदेशभ...