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बुधवार, 5 मई 2010

शमशान........(कविता)......वंदना

दुनिया के कोलाहल से दूरचारों तरफ़ फैली है शांति ही शांतिवीरान होकर भी आबाद है जोअपने कहलाने वालों के अहसास से दूर है जोनीरसता ही नीरसता है उस ओरफिर भी मिलता है सुकून उस ओरले चल ऐ खुदा मुझे वहांदुनिया के लिए कहलाता है जो शमशान य...

किरदार.......श्यामल सुमन जी

बाँटी हो जिसने तीरगी उसकी है बन्दगी।हर रोज नयी बात सिखाती है जिन्दगी।।क्या फर्क रहनुमा और कातिल में है यारो।हो सामने दोनों तो लजाती है जिन्दगी।। लो छिन गए खिलौने बचपन भी लुट गया।है बोझ किताबों का दबाती है जिन्दगी।। है वोट अपनी लाठी क्यों भैंस है उनकी।क्या चाल सियासत की पढ़ाती है जिन्दगी।। गिनती में सिमटी औरत पर होश है किसे।महिला दिवस मना के बढ़ाती है जिन्दगी।।किरदार चौथे खम्भे का हाथी के दाँत सा।क्यों असलियत छुपा के दिखाती है जिन्दगी।।देखो सुमन की खुदकुशी टूटा जो डाल से।रंगीनियाँ कागज की सजाती है जिन्दग...

मन-मरुस्थल-----------------[कविता]----------------सन्तोष कुमार "प्यासा"

मन में है एक विस्तृत मरुस्थल या मन ही है मरुस्थल रेत के कणों से ज्यादा विस्तृत विचार है रह-रह कर सुलगती है उम्मीदों की अनल विषैले रेतीले बिच्छुओं की भांति डंक मारते अरमाँ हर पल मै "प्यासा" हूँ मन भी "प्यासा" पागल है सब ढूढे मरुस्थल में जल मन में है एक विस्तृत मरुस्थल या मन ही है मरुस्थल वक्त के इक झोके ने मिटा दिया आशा-निराशा के कण चुन कर बनाया था जो महल मन मरुस्थल, मन में है मरुस...

एक महान कवित्री-----------[कविता]-------------सन्तोष कुमार "प्यासा"

 मैंने एक महान कवित्री के बारे में पढ़ा जिस पर था प्रकृति के प्रति असीम प्रेम चढ़ा उनमे प्रतिभा थी प्रकृति प्रदत्त कोलकाता में जन्मी नाम था तोरू दत्त साहित्य सृजन अल्पायु में ही प्रारम्भ किया मानव-प्रकृति के मर्म को सरलता से जान लिया पिता के साथ विदेश किया प्रस्थान प्रकृति प्रेम, साहित्य प्रेम का और बढ़ गया गुण महान उम्र के साथ साथ प्रतिभा रूपी पुष्प खिलता रहा प्रकृति के प्रति असीम प्रेम, उनकी कविताओ में मिलता रहा २१...