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शुक्रवार, 17 दिसंबर 2010

सफर में ठोकर............... (सत्यम शिवम)

ठोकर ये कैसी मिली है सफर में, डुब गया है मन अब अँजाने भँवर में। हौसला मेरा अब ना पस्त हो जाये, मंजिल से पहले ही ना रास्ते खो जाये। एक मजाक बना हूँ मै नफरत के इस शहर में, मै घोलना चाहता हूँ, प्यार दुनिया के इस जहर में। ये जहर कही मेरी जिंदगी में ना घुल जाये, अरमाँ मेरे ना यूँ चकनाचूर हो जाये। सच्चाई का ना मोल है अब यहाँ, ईमानदारी भटक रही है यहाँ वहाँ, हैवानियत का नँगा नाच तो देखो, इंसानियत को दफनाते है खुद इंसान यहा। सच्चाई बस पागलपन समझी जाती...