हमारा प्रयास हिंदी विकास आइये हमारे साथ हिंदी साहित्य मंच पर ..

बुधवार, 23 सितंबर 2009

समय की नदी हू एक मै मौन ------- "किशोर"

एक मै मौनतटस्थ मन्दिर की सूनी सीढीयो काझिलमिलाता दृश्य लिएयापीपल की घनी बाहों सेझरेपत्तो की शुष्क अधरों की प्यास लिएमै बहती हूखुद राह बनातीतोड़ धरती की छातीमोड़ से हरआगे बढ़करलौट करफिर कभी नही आतीसमय की नदी हूएक मै मौनगहराई से मेरा नाता हैसत्य की सतह का स्पर्श जो नही कर पाता हैउसे इसजग -जल मेतैरना कहा सचमुच आता हैपारदर्शी देह के कांच मे अपनेमौसम के हर परिवर्तन काअक्श लीयेसोचतीकभी थाम करसदैव रहूबादलो के जल -मग्न छोरधरा के जीवित पाषाणों कीलुभावनी आकृतियों के आकर्षण कोंछोड़यावन वृक्षो की जड़ो कामेरे लिएमोह का दृड़ नातातोड़मै चाहती बहती रहू निरंतरक्षण...

सहमा सहमा हर इक चेहरा --------"जतिन्दर परवाज़"

सहमा सहमा हर इक चेहरा मंजर मंजर ख़ून में तरशहर से जंगल ही अच्छा है चल चिड़िया तू अपने घरतुम तो ख़त में लिख देती हो घर में जी घबराता हैतुम क्या जानो क्या होता है हाल हमारा सरहद परबेमोसम ही छा जाते हैं बादल तेरी यादों केबेमोसम ही हो जाती है बारिश दिल की धरती परआ भी जा अब जाने वाले कुछ इन को भी चैन पड़े कब से तेरा रस्ता देखें छत आँगन दीवार-ओ-दरजिस की बातें अम्मा अब्बू अक्सर करते रहते हैंसरहद पार न जाने कैसा वो होगा पुरखों का...