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रविवार, 28 जून 2009

व्यंग्य कविता /कुत्ता

कुत्ता
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तथा कथित नेता जी के भाषण ने
एक कुत्ते के आराम में
खलल पहूँचाया
कुत्ते को नहीं भाया
मंच पर जा पहुँचा
और न केवल नेता जी को काटा
उनके कपड़े भी फाड आया .
इसपर पूरा कुत्ता समाज
उसपर गुर्राया-
मूर्ख तूने यह क्याकर डाला .?
तुझे मालूम है
वह नेता है
उसका कुछ नहीं बिगडेगा
लेकिन तुझे
चौदह इंजेक्शन लगवाने पडेगें
नहीं तो तू
किसी विदेशी अस्पताल में
नेता की मौत मरेगा
हिन्दुस्तानी सरकारी अस्पतालों में
इंसानों की तरह
बेरहमी से मरने को भी तरसेगा .
तुझे मालूम है
नेता ऐसा जीव है
जो बडी- बडी योजना तक
हजम कर जाता है
इसका काटा
आई.ए.एस. अफसर भी
नहीं बच पाता है
और तूने उसे ही काट लिया
इससे
उसके बाप का क्या जाऐगा
मरेगा तो तू.....
और वो जनता के चन्दे से
तेरे नाम का स्मारक बनवाकर
तुझे ही श्रद्धांजलि दे जाऐगा
जिससे तू ही क्या
हमारा पूरा खानदान
बदनाम हो जाऐगा.....!
डॉ.योगेन्द्र मणि

शनिवार, 27 जून 2009

अन्तरमन......[एक कविता ]


सोचता हूँ ,

क्या है अन्तरमन ?

और

क्या है बाह्यमन?

मन तो है-

केवल मन,

चंचल है,

उच्छल है,

एकाग्र है,

गंभीर है।

मेरा मन ,

तेरा मन ......

गुरुवार, 25 जून 2009

देवों के सिर ,विजयध्वज फ़हराऊँगा - कविता प्रतियोगिता में द्वितीय स्थान पर चुनी गयी कविता ( डा0 तारा सिंह )

संक्षिप्त परिचय

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नाम - डा० (श्रीमती) तारा सिंह

शिक्षा/मानदोपाधि-- साहित्य रत्न , राष्ट्रभाषा विद्यालंकार, विद्या वाचस्पति, विद्या वारिधि, साहित्य महोपाध्याय, कवि कुलाचार्य, भारती रत्न, वर्ल्ड लाइफ़ टाइम अचीवमेन्ट अवार्ड, वोमेन आफ़ दी ईयर अवार्ड,राजीव गांधी अवार्ड

अभिरुचिकविता, ग़ज़ल, सिनेमा गीत,कहानी,उपन्यास आदि लेखन

संप्रतिसंस्थापक अध्यक्ष स्वर्ग विभा (www.swargvibha.tk), कार्यकारी अध्यक्ष, साहित्यिक,सांस्कृतिक,कलासंगम अकादमी,परियावाँ, उपाध्यक्ष,विश्व हिंदी सेवा संस्थान, इलाहाबाद ; साहित्य चर्चा और समाज सेवा

पति - डा० ब्रह्मदेव प्रसाद सिंह , भूतपूर्व प्राचार्य, रीडर एवं रसायन विभागाध्यक्ष , आचार्य जगदीश चन्द्र बसु महाविद्यालय, कलकत्ता विश्वविद्यालय , कलकत्ता

संपर्क१५०२,सी क्वीन हेरिटेज़, प्लाट- ,से०१८, सानपाड़ा, नवी मुम्बई - ४००७०५

दूरभाष -09322991198, 022- 32996316; 09967362087.

email :- rajivsinghonline@hotmail.com

स्वरचित काव्य -संग्रह प्रकाशित - प्रकाशित -21 ; प्रकाशनाधीन – 4 .

(१) एक बूँद की प्यासी (२) सिसक रही दुनिया (३) हम पानी में भी खोजते रंग (४) एक पालकी चार कहार (५) साँझ भी हुई तो कितनी धुँधली (६) एक दीप जला लेना (७) रजनी में भी खिली रहूँ किस आस पर (८) अब तो ठंढी हो चली जीवन की राख (९) यह जीवन प्रातः समीरण-सा लघु है प्रिये (१०) तम की धार पर डोलती जगती की नौका (११) विषाद नदी से उठ रही ध्वनि (१२) नदिया-स्नेह बूँद सिकता बनती (१३) नगमें हैं मेरे दिल के (गज़ल संग्रह) (१४) यह जग केवल स्वप्न असार (१५) तुम्हारी वो काफ़िर निगाहें (१६) सिमट रही संध्या की लाली (१७) तृषा (कहानी संग्रह) (१८) बर्गे यासमन (गज़ल संग्रह) (१९) साँझ का सूरज (२०) खिरमने गुल (गज़ल संग्रह) (२१) दूसरी औरत (उपन्यास) (२२) जो कह न सकी (शीघ्र प्रकाश्य) (२३) जीवन की रेती पर (शीघ्र प्रकाश्य),(२४) नक्षत्र लोक (शीघ्र प्रकाश्य) (२५) कुछ मेरी कुछ आपकी (शीघ्र प्रकाश्य)

सहयोग़ी काव्य-संकलन प्रकाशित -- 67

(१) पूरब-पश्चिम (२)गजल प्रिया-२००४ (३) फूल खिलते रहेंगे (४) काव्य गंगेश्वरी (५) स्त्री नहीं प्रकृति हो तुम (६) आत्मा की पुकार (७) यादों के फूल (८) नया क्षितिज (९) काव्य मंदाकिनी (१०) कविता की लकीर (११) शब्द कलश (१२) काव्य सरिता (१३) रश्मिरथी (१४) अभिव्यक्ति (१५) स्मृति के सुमन (१६) शून्य से शिखर तक (१७) अन्तर्मन (१८) देश- परदेश (१९) लेखनी के रंग (२०) काव्य मंजूषा (२१) श्रम साधना और साहित्य के दर्पण (२२) काव्य सुधा (२३) शब्द -सूर्य (२४)गंगोत्री- (२५) स्वर पसून (२६)काव्य संगम (२७)सप्त सरोवर (२८)शब्द माधुरी (२९)युवा कौन (३०)सरोरूह (३१)काव्य सलिला (३२)अंजुमन (३३)काव्य मजुषा'०७ (३४)वंदना (३५)यादें (३६) साधना सार्थक होगी (३७) काव्य दर्पण (३८) सद्भावना एवं साहित्य दर्पण (३९) सुरभि पुष्प (४०)शब्द तरंग (४१) शब्द सखा (४२) उजास (४३) कैसे कहूँ (४४) अष्ट कमल (४५) दूर गगन तक (४६) शब्द गंगा (४७) लहराये तिरंगा प्यारा (४८) एक दीप जला लेना (४९) काव्य गंगा (५०) हृदय के गीत (५१) हिमालय की गुड्डी (५२) स्नेहिल स्मृतियाँ (५३) संगमन (५४) आईना (५५) देव सुधा (५६) लाड़ली बेटियाँ (५७) काव्य सिंधु ये मेरा भारत (५८) कण-कण चंदन (५९) माटी के रंग (६०) विदुषी (६१) अभिव्यंजना (६२) माँ तुझे सलाम (६३) आखर के नये घराने (६४) काव्य सागर (६५) काव्य सुधा द्वितीय (६६) नमन करें मातृभूमि को (६७) सत्यमेव जयते (६८) अन्य अनेक पत्र-पत्रिकाओं में

Websites (21) :-

(i) www.poetrypoem.com/tarasingh,(ii) www.poetrypoem.com/poetic13,(iii) www.writebay.com/tarasingh, (iv) www.writebay.com/poetic13, (v) www.poetryvista.com/poetic13,(vi) www.poetryvista.com/tarasingh, (vii) www.sawf.org, (viii) www.poemsnpoetry.com, (ix) www.maxpages.com/tarasingh,

(x) http://sharepoetry.com/user/show/tarasingh, (xi) www.desiclub.com (xii) www.mcl.org,

(xiii) www.storypublisher.com/tarasingh, (xiv) www.indolink.com,(xv) http://hindipoems.spaces.live.com,

(xvi) www.kaavyanjali.com, (xvii) www.kavitakosh.org , (xviii) www.writers-club.com,

(xix) www.srijangatha.com (XX) www.sahityakunj.net (xxi) www.swargvibha.net.

Above sites included in search engine data base of alltheweb, yahoo, altavista & google.

सम्मान / पुरस्कार / मानदोपाधि :--

  1. साहित्य सेवी सम्मान पुरस्कार (११०००/-),बिहार राष्ट्रभाषा परिषद( मानव संशाधन विकास मंत्रालय, उच्च शिक्षा विभाग, बिहार सरकार), पटना
  2. साहित्य महामहोपाध्याय,भारतीय साहित्यकार संसद, समस्तीपुर
  3. ’साहित्य महोपाध्याय’, ,सा० सां० कला संगम अकादमी, परियावाँ
  4. ''कवि कुलाचार्य',अखिल भारतीय साहित्य संगम , उदयपुर
  5. विद्या सागर ( डी० लिट्०)’,विक्रमशिला हिन्दी विद्यापीठ, भागलपुर
  6. विद्या सागर ( डी० लिट्०)’, विश्व हिन्दी सेवा संस्थान, इलाहाबाद
  7. विद्या सागर ( डी० लिट्०)’, भारतीय साहित्यकार संसद, समस्तीपुर
  8. ‘विद्या वारिधि ( डी० लिट्०) ', भारतीय साहित्यकार संसद , समस्तीपुर
  9. 'विद्या वारिधि ( डी० लिट्०) ', विश्व हिन्दी सेवा संस्थान , इलाहाबाद
  10. ‘साहित्य वारिधि ( डी० लिट्०) ', सा 0 सां 0 कला संगम अकादमी,प्रतापगढ
  11. कवि सम्राट,अखिल भारतीय साहित्य संगम , उदयपुर
  12. 'विद्या वाचस्पति (पी-एच्० डी०)', विक्रमशिला हिन्दी विद्यापीठ, भागलपुर
  13. 'विद्या वाचस्पति (पी-एच्० डी०)',सा 0सां 0 कला संगम अकादमी,प्रतापगढ
  14. ’अंग गौरव उपाधि’, विक्रमशिला हिन्दी विद्यापीठ, भागलपुर
  15. ’ब्रज गौरव मानदोपाधि’, आसरा समिति,बलदेव (मथुरा)
  16. ’लेखक मित्र मानदोपाधि’,आशा मेमो० मित्रलोक पब्लिक पुस्तकालय,देहरादून
  17. ’काव्य कुमुद मानद उपाधि’, अभिव्यंजना सा० संघ एवं सा० संस्था,कानपुर
  18. ’जनकवि मानदोपाधि’, समग्रता शिक्षा सा० एवं कला परि० कटनी
  19. 2009 Woman of the year Award( representing India), The Ame. Bio Institute
  20. ‘Rajiv Gandhi Excellence Award 2008’, New Delhi
  21. “World Lifetime Award,2007’, The Ame. Bio. Institute
  22. ‘‘Woman of the year Award,2007’ –the American Bio. Institute
  23. 'Rising Personalities of India Award’– Int. Penguin Pub House, New Delhi.
  24. ‘Gold Medal’ – Int. Penguin Pub House, New Delhi.
  25. “Bharat Jyoti Award,2008’ - I.I.F.S., New Delhi.
  26. “Certificate Of Excellence’-- I. I.F.S. , New Delhi.
  27. ‘Best Citizens of India Award,2008’,Inte. Pub House, N Delhi
  28. ‘Rashtriya Samman Puraskar,2008’, I.S.I.I.D., New Delhi
  29. ‘Gold Medal,2008 II’,I.S.I.I.D.,New Delhi
  30. ‘Mother Terisa Award,2008’, New Delhi
  31. ‘Gold Medal,2008’, I.S.I.I.D.,New Delhi
  32. ‘Rashtriya gaurav Ratan Award’, I.S.I.I.D.,New Delhi
  33. ‘Gold Medal’,I.S.I.I.D., New Delhi
  34. “Natioal Status Award for Intellectual Development’, I.O.C.I.,Delhi
  35. नागार्जुन आहट शिखर सम्मान,२००७’, शाम्भवी-सदन-स०,दरभंगा
  36. राष्ट्रीय हिन्दी सेवी सम्मान,अ० भा०राष्ट्रभाषा सम्मेलन, हससासा, नई दिल्ली
  37. तुलसी सम्मान,२००७’,म० प्र०तुलसी साहित्य अका० भोपाल
  38. आचार्य हज़ारी प्रसाद द्विवेदी सम्मान, हिन्दी भाषा सम्मे०,पटियाला
  39. 'महादेवी वर्मा सम्मान', अखिल भारतीय साहित्यकार समिति, मथुरा
  40. 'हिन्दी रत्न ', अंतर्राष्ट्रीय प्रतिभा सम्मान अकादमी, कुशीनगर
  41. 'ऋतंभरा रत्न -२००६',ऋतंभरा साहित्यिक मंच ,दुर्ग
  42. 'हिन्दी सेवी सम्मान', जैमिनी अकादमी, पानीपत
  43. 'भारती भूषण सम्मान’', राष्ट्रीय राजभाषा पीठ , इलाहाबाद
  44. 'साहित्य श्री सम्मान', अ० भा० भाषा सा० सम्मेलन(केन्द्रीय संस्था), भोपाल
  45. 'श्रीमती केसर बाई सोनी स्मृति सा० रा० शिखर सम्मान ',साहित्यांचल,भीलवाड़ा(राजस्थान)
  46. .'हिन्दी काव्य रत्न ’, अंतर्राष्ट्रीय प्रतिभा सम्मान अकादमी, कुशीनगर
  47. 'श्रेष्ठ साधना सम्मान' ’ अखिल भा 0 भाषा सा 0 सम्मेलन(केन्द्रीय संस्था),भोपाल
  48. 'वीरांगना सावित्री बाई फुले फेलोशिप अवार्ड ' भा 0 दलित सा 0 अकादमी, दिल्ली
  49. 'सन्त कवि कबीर पुरस्कार', अनोखा विश्वास , इन्दौर
  50. 'राष्ट्रभाषा विद्यालंकार',अखिल भा 0 साहित्य कला परिषद , कप्तानगंज
  51. 'निराला सम्मान'’, शब्द कारखाना, जमालपुर (बिहार)
  52. 'साहित्य सुमन ’, अंतर्राष्ट्रीय पराविद्या शोध संस्था (महाराष्ट्र)
  53. 'साहित्य गौरव सम्मान ', खानकाह सूफी दीदार शाह चिश्ती, नवी मुम्बई
  54. 'विशिष्ट सम्मान(२००५)’', प्रबंध निदेशक, बिहार स्टेट टेक्स्ट बुक पा 0 कार 0, पटना
  55. 'कवयित्री महादेवी वर्मा सम्मान ', विश्व हिन्दी सेवा संस्थान , इलाहाबाद
  56. 'भाषा रत्न सम्मान ', जैमिनी अकादमी , पानीपत
  57. 'साहित्य प्रभा सर्वोच्च ग्यानमाला पुरस्कार', दून द्रोण आदिम विकास समिति,देह 0
  58. 'पूर्व-पश्चिम काव्य गौरव सम्मान ', जागृति प्रकाशन, मुम्बई
  59. 'साहित्यांचल राष्ट्रीय शिखर सम्मान ', साहित्यांचल, भीलवाड़ा (राजस्थान)
  60. 'काव्य प्रतिभा सम्मान ' अंतर्राष्ट्रीय प्रतिभा सम्मान अकादमी, कुशीनगर
  61. 'सुभद्रा कुमारी चौहान सम्मान ', अंतर्राष्ट्रीय पराविद्या शोध संस्था, महाराष्ट्र
  62. 'राष्ट्र गौरव साहित्य सृजन सम्मान ',सुरभि सा 0 संस्कृति अका 0,खण्डवा
  63. 'मीरा रजत स्मृति सम्मान ', हिन्दी भाषा साहित्य परिषद, खगड़िया
  64. 'राष्ट्र काव्य गौरव ', खानकाह सूफी दीदार शाह चिश्ती, नवी मुम्बई
  65. 'मुम्बई रत्न ', जैमिनी अकाडमी, पानीपत
  66. 'स्व० श्री हरिठाकुर स्मृति सम्मान ', पुष्पग़ंधा प्रकाशन, छत्तीसगढ
  67. 'हिरदे कवि रत्न ', छत्तीसगढ शिक्षक साहित्यकार मंच
  68. 'विशिष्ट साहित्य साधना सम्मान ',अखिल भा 0 भाषा सा 0 सम्मेलन,भोपाल
  69. 'काव्य मधुरिमा ', अखिल भारतीय साहित्य संगम उदयपुर
  70. 'काव्य भूषण ', काव्यलोक संचालन समिति, जमशेदपुर
  71. ‘मधुमिश्रित आकांक्षा साहित्य सम्मान ’,सुरभि सा 0 संस्कृति अका 0,खण्डवा
  72. 'समन्वय श्री ',अखिल भा 0 भाषा सा0 सम्मेलन(के 0संस्था),भोपाल
  73. 'हिन्दी गौरव सम्मान ' अंतर्राष्ट्रीय प्रतिभा सम्मान अका 0, उ० प्र०
  74. 'साहित्य शिरोमणि ', मानव कल्याण संघ , दादरी (भिवानी)
  75. 'भारत गौरव सम्मान', ऋचा प्रकाशन , कटनी (म० प्र० )
  76. 'हिन्दी काव्य ज्योति सम्मान ',खानकाह सूफी दीदार चिश्ती,नवी मुम्बई
  77. 'राष्ट्रीय प्रतिभा सम्मान ',अखिल भारतीय राष्ट्रभाषा विकास संगठन,गाजियाबाद
  78. 'रंजन कलश शिव –सम्मान ', रंजन कलश, भोपाल
  79. 'सम्मान प्रमाण – पत्र ', अखिल भारत वैचारिक क्रांति मंच ,लखनऊ
  80. 'राष्ट्रीय साहित्य शिखर सम्मान ', भारतीय साहित्यकार संसद , समस्तीपुर
  81. 'भारती रत्न सम्मान ', राष्ट्रीय राजभाषा पीठ, इलाहाबाद
  82. 'डा० बाबा साहेब आम्बेडकर साहित्य रत्न पुरस्कार ', अनोखा विश्वास, इन्दौर
  83. ऋतम्भरा साहित्य मणि सम्मान’’ , ऋतम्भरा साहित्य मंच , दुर्ग
  84. 'सम्मान प्रमाण पत्र', अ० भा० कवयित्री सम्मे०, विद्यापीठ महोत्सव ,भागलपुर
  85. 'कवि शिरोमणि',विक्रमशिला हिन्दी विद्यापीठ, भागलपुर
  86. 'स्मृति साहित्य श्री सम्मान',श्री मुकुन्द मुरारी स्मृति सा० माला,कानपुर
  87. 'सम्मान प्रमाण -पत्र', आदित्य साहित्यिक संस्था, कानपुर
  88. 'सारस्वत साहित्य सम्मान',भारतीय वाङमय पीठ , कोलकाता
  89. 'मधुरिमा रत्न', इतिहास एवं पुरातत्व संस्थान , म० प्र०
  90. 'साहित्य रत्न सम्मान ',तरुण सांस्कृतिक चेतना समिति,समस्तीपुर
  91. 'जन कवि मानदोपाधि',समग्रता शिक्षा साहित्य एवं कला परिषद ,कटनी
  92. 'काव्य मर्मग्य सम्मान',इन्द्रधनुष साहित्यिक संस्था,बिजनौर (उ० प्र०)
  93. 'साहित्य गौरव अवार्ड', श्री महादेव संस्थान , वर्धा (महाराष्ट्र)
  94. 'तुलसी सम्मान' म० प्र० तुलसी साहित्य अकादमी, भोपाल
  95. 'स्व० रामकिशन दास स्मृति गीति-साहित्य-सम्मान', अ० भा० कला मंच,मुरादाबाद
  96. साहित्य शिखर सम्मान,२००७’, मनु प्रकाशन, बालाघाट
  97. अभिव्यक्ति सम्मान २००७’, दृष्टि, भार्गव कालोनी, गुना (म० प्र०)
  98. साहित्य मनीषी सम्मान’, मध्यप्रदेश नवलेखन संघ, भोपाल
  99. ’कवि रत्न सम्मान’, जेमिनी अकादमी ,पानीपत
  100. ’काव्य गौरव सम्मान,२००७’, आकृति प्रकाशन पीलीभीत (उ०प्र०)
  101. ’साहित्य सेवा सम्मान’, छत्तीसगढ़ शिक्षक साहित्यकार मंच, दुर्ग
  102. ’शान-ए-अदब’, शबनम साहित्य परिषद, सोजत सिटी (राज०)
  103. ’स्व० महादेवी वर्मा स्मृति सम्मान’, पुष्पगंधा प्रकाशन, कवर्धा (छ०ग०)
  104. ’सम्मान प्रमाण –पत्र’, श्री हिन्दू विश्व प्रसार प्रतिष्ठान, कानपुर
  105. ’देवभूमि साहित्य रत्न’, देवभूमि साहित्यकार मंच, पिथोरागढ़
  106. ’रमेश प्रसाद–सरला देवी हिंदी भूषण अलंकरण’,अभियान,जबलपुर(म०प्र०)
  107. ’माता अमर कौर सम्मान,२००८’,अ० भाषी हिन्दी लेखक संघ,दिल्ली
  108. ’न्यू ऋतंभरा सद्भावना साहित्य सम्मान’, न्यू ऋतंभरा साहित्य मंच, दुर्ग
  109. ’निराला स्मृति रजत सम्मान,२००६’, हिन्दी भाषा सा० परि०, खगड़िया
  110. ’भारत भूषण सम्मान २००८’, लोक भारती सेवा संस्थान, सुलतानपुर
  111. ’भारतेन्दु हरिश्चन्द्र स्मृति रजत सम्मान,२००८’, हिन्दी भाषा सा० पर० खगड़िया
  112. ’स्व० सरस्वती पाण्डेय स्मृति सम्मान’, विन्ध्यवा० हिन्दी वि० स०,नई दिल्ली
  113. ’स्व० ग्यानी अमर सिंह जोबन सम्मान’, अ० भाषी हिन्दी लेखक संघ,दिल्ली
  114. ’फ़नकार ए-ग़ज़ल सम्मान’, आकृति सा० मंच , पीलीभीत (उ० प्र०)
  115. ’हिन्दी भाषा भूषण सम्मान’, साहित्य मंडल श्रीनाथद्वारा (रा०)
  116. ’काव्य शिरोमणि’, नवयुग साहित्य संगम, लखनऊ
  117. सा० प्र० साहित्यकार कुलभूषण सम्मान’, दून द्रोण आदिम विकास समिति, देहरादून
  118. ’पंचशील शिरोमणि’, अखिल भारतीय सि० स० से० सो० , नई दिल्ली
  119. ’सम्मान पत्र’, सामयिकी, भीलवाड़ा
  120. ’सम्माण शिरोमणि’, अखिल भारतीय सि०स० से० सो०, नई दिल्ली
  121. ’सृजनदीप सम्मान’,सृजनदीप कला मंच, पिथौरा गढ़
  122. ’महाराष्ट्र रत्न सम्मान’, ज़ेमिनी अकादमी, पानीपत
  123. ’महिमा साहित्य सम्मान २००८’, छ० ग) शिक्षक साहित्यकार मंच
  124. ’भगत श्री मोहर सिंह स्मृति सम्मान’,श्री बाबा गरीबनाथ विद्या प्रचारणी पीठ ,हरियाणा
  125. ’शब्द-सूर्य अलंकरण’, अ० भा० शब्द सूर्य, ग्वालियर
  126. ’काव्य भूषण’, अखिल भा० हिन्दी प्रसार प्रतिष्ठानन, पटना
  127. ’उजास सम्मान -२००८’, राजेश्वरी प्रकाशन, गुना (म० प्र०)
  128. ’काव्य कलश सम्मान,२००९’, हिन्दी भाषा सम्मेलन, पटियाला पंजाब

फिल्मी गीत

'जयहिन्द सिपाई जी ‘ हिन्दी फिल्म के लिए कविता, तीसरी पुस्तक से अनमोल प्रोडक्शन , मुम्बई द्वारा शीर्ष गीत के रूप में ली गई |

सदस्यता -

  1. संरक्षक, विश्व स्नेह समाज, इलाहाबाद
  2. संरक्षक, साहित्यांचल (भीलवाड़ा)
  3. सलाहकार, साहित्य सरोवर (कर्नाटक)
  4. दी फिल्म राइटर्स एसोसियेशन , अँधेरी, मुम्बई की सदस्यता

( ) अखिल भारतीय भाषा साहित्य सम्मेलन केन्द्रीय संस्था,भोपाल की आजीवन सदस्यता

() संरक्षक-परामर्शदाता मण्डल, अ० भा० साहित्यकार अभिनन्दन समिति, मथुरा की

आजीवन सदस्यता

() अखिल भारतीय कवयित्री सम्मेलन, खुरजा (उ० प्र०) की आजीवन सदस्यता

जीवन वृत्त प्रकाशित -

एफ्रो - एशियन हूज -हू, खंड १ (२००६) (२) एशिया-पैशेफिक हूज -हू, खंड ६ (२००६) , ( )राईजिंग पर्सोनालिटी आफ़ इन्दिअ अवार्ड बुक,२००६ (४) बेस्ट सिटिजेन्स आफ़ इन्डिया बुक,२००८, पृष्ठ-६६.




देवों के सिर विजयध्वज फहराऊंगा






पूर्व युग सा इस धरा पर,


मानव अब नहीं रहा लाचार


देख जगह का अभाव,


आसमां का खोलकर द्वार


रहने चला गया क्षितिज के उस पार


सोचा, अपने नये इरादों से मसलकर पृथ्वी को गोल


आकार में बदलकर ,


रचूँगा एक नया इतिहास


विजय- ध्वज फ़हराऊँगा देवों के सिर पर,जिससे


चतुर्दिक फ़ैली रहेगी सुनहली शांति,


बनकर हिम फ़ुहार


हमारी नसों में बह रहा है कलयुग का लहू


अब हम नहीं रहेंगे बनकर प्रकृति का दास


मृतकों के इस अभिशप्त महीतल से ऊपर उठकर


स्वच्छंद होकर विचरूँगा आकाश, जहाँ हमारे


स्वागत में भयभीत होकर चाँद – तारे दोनों


भुज फ़ैलाये खड़े हैं, सूरज कर रहा है इंतजार



        सतयुग, त्रेता, द्वापर बहुत पीछे छूट गये


        बहुत दूर निकल आया है मृगमय संसार


        वसुधा पर अब इतना कोलाहल भर गया, कि


        मुश्किल हो गया है, कल्पना का लेना नया आकार


        हत्या, लूट-पाट जैसे संक्रामक रोगों का हो गया प्रसार


        एकाकी दुखी असहाय मनुज के मन में रहने लगा तनाव



मानव-मन बुद्धि आकाश का इतना किया विकास


कि भ्रांत नर अपने आविष्कृत दानव की भूख


मिटाने, अपने तन को बना दिया आहार


बारी-बारी से मुट्ठी में बंद किया धरती, आकाश


जब चाहता, वारि से वाष्प बनाता, वाष्प से वारि


बनाकर धरती पर करवाता बरसात


मूक ठगी रह जाती प्रकृति,


अचंभित रहता आकाश


मनुज देह के मांसल रज से,


धरती का निर्माण देखकर




जीवन से मुँह मोड़ती जा रही है नई पीढ़ी


फ़ूलों सा मृदु अंग को त्यागकर, हृदय की मधुरिमा को


पाषाण शिला-सा बनाये जा रहा है,मनुज का यह प्रतिनिधि


इन्हें स्वीकार नहीं अब इस धरती की हरी- भरी हरियाली


निश्चय ही यह नाश का खेल करने वाला है बड़ी अनहोनी



        प्रकृति के हर तत्व को मनुज,समझने लगा है अपना गुलाम


        नव- धरा के बीच कुछ भी अग्येय न रह पाये


        प्रकृति के किस मिट्टी से फ़ूटता, विभव का सहज स्रोत


        जिससे इच्छाओं की सभी घाटियाँ पट जाती हैं, इसे ग्यात


        करने में जुट गये, करने लगे नये - नये अनुसंधान


        पर यह द्रुत उद्दाम एक पल भी विश्राम नहीं दे सकता


        न ही ऐसे दिशाहीन उद्देश्य को, कोई कर सकता प्रणाम



चाँद-तारों को उकसाकर, नभ-गिरि को चीरकर


भस्मासुर - सा अणुबल का वरदान प्राप्त कर


आखिर मनिष्य कैसा रचना चाहता इतिहास


क्या वह यह सोचता है, उसके भस्मशेष से


पुन: नवजीवन लेकर जी उठेगा, फ़िर से करेगा-


जीवन निर्माण, तो व्यर्थ है उसकी ऐसी भावना


निराधार है उसका उमंग, झूठा है अभियान


          कर - संकुल लोकजीवन का चैन छीनकर


          सिंधु, धरा, आकाश को भयभीत कर


          इस निराधार बदलाव का क्या है उद्देश्य


          जिसमें श्मशान बना जा रहा है धरती का प्रांगण


          जीवन कांपता एकांत में भी, मृत्यु रहती अजेय


          क्षितिज छोड़ कणक-घन भाग जाता तम में छुपने


          प्राणी विलाप करता, खोजता जीने का ध्येय


कूड़े - कचरे, गढ़े- नाले जहाँ भी देखो वहीं


सोये रहते मुर्दे, बिखरे रहते कंकालों के ढेर


टकरा-टकराकर,चटक-चटककर चिनगारी निकलती


निश्चय ही है यह पाषाण नर हृदय की देन

बुधवार, 24 जून 2009

भूख


भूख
मानव तन से लिपटी सिमटी
एक ऐसी लड़ी
जो जोड़ती है
जिन्दगी में अनेक कड़ी।
कहीं भूख है रोटी की,
तो कहीं दौलत की,
किसी को भूख शोहरत की,
तो किसी को ताकत की,
कत्ल हुआ किसी का भूख में,
लुट गया मानव तन भी भूख में।
भूख ने दिये अंजाम हमेशा
अच्छे और बुरे,
मिली हमें आजादी
भूखे रहकर
आजादी की भूख में,
पर..
लुटा गये शांति अपनी
चन्द सिक्कों की भूख में।
कब खत्म होगी भूख
इस मानव मन की?
शायद आज...
शायद कल...या
शायद कभी नहीं?

शनिवार, 20 जून 2009

कोई अपना न निकला


समझा था सेहरा फूलों का जिसे,
वो ताज काँटों भरा निकला।
चला था जिस राह पर फूलों की,
वो सफर काँटों भरा निकला।

सहारा दिया समझ कर बेबस,
थामा था जिन हाथों को हमने।
घोंपने को पीठ में हमारी,
उन्हीं हाथों में खंजर छिपा निकला।

मिलेगा साथ हर मोड़ पर हमें,
सोच कर चले थे अनजानी राहें।
गिर पड़े एक ठोकर से जिसकी,
वो गिराने वाला हमारा अपना निकला।

मतलब की इस दुनिया में,
शिकायत गैरों से नहीं है हमें।
समझा था जिस-जिस को अपना,
वो हर शख्स ही बेगाना निकला।

चार दिन की इस जिन्दगानी में,
साथ किसी का रहता नहीं है।
पर ये दुखड़ा किससे कहें कि,
हमसे मुँह फेर हमारा साया निकला।

चलना है ताउम्र हमें अकेले अब,
तूफान तन्हाई व सूनेपन का समेटे।
जीवन के इस लम्बे सफर में,
कोई न हमसफर हमारा निकला।

रविवार, 14 जून 2009

डर आतंक का


आतंक के उत्पात से,
हिंसा की हिंसात्मक राहों से
थक-हार कर निकला,
शांति की खोज में,
प्रेम, अहिंसा की चाह में।
भटकता रहा दरबदर,
पर ये न आये नजर,
सोचा....कहीं इनको
कत्ल न कर दिया गया हो?
पर मन...ये व्याकुल मन
न माना ये अखण्ड सत्य।
जो स्वयं सत्य है
वही असत्य है।
थक-हार कर
एक निर्जन कोने में बैठ कर
मन को टटोला,
तो....किसी सूने कोने में
प्रेम, अहिंसा, शांति को पाया।
गाँधी के तीन बंदरों की तरह
एक साथ थे,
घायल पड़े थे,
कराह रहे थे।
किसी तरह
मेरे आने का सबब पूछा।
मैंने उन्हें
अपना मन्तव्य बताया,
हर तरह से,
हर तरफ से
मची हिंसा को
शांत करने के लिए
साथ चलने को कहा,
पर....
भय से पीले पड़े
चेहरों के पीछे की करुणा ने
सब कह दिया,
लगा....
कातर दृष्टि से कह रहे हों जैसे
‘‘हे मानव!
मुझे अकेला छोड़ दो
मरने को,
नहीं हमारी चाह अब किसी को,
अब दुनिया
हिंसा आतंक की है,
हमें अब फिर से जिन्दा न करो,
क्योंकि
तुम हमें बचाकर न रख पाओगे
और हम फिर
किसी हिंसा, आतंक के द्वारा
कत्ल कर दिये जायेंगे,
मार डाले जायेंगे।

शनिवार, 13 जून 2009

व्यंग्य /ठीकरा

ठीकरा

भारतीय राजनीति में आजकल एक शब्द बहुत ही प्रचलित होता जारहा है ,‘ठीकरा’ ।अब ‘ठीकरा’ बेचारा एसी निर्जीव तुच्छ वस्तु है जिसे हर कोई एक दूसरे के सिर पर ही फोडने के लिऐ आमादा रहता है। मजे की बात ये है कि ठीकरे को भी कभी कोई गुरेज नहीं , आपकी मर्जी आए जब चाहे जहाँ फोडो....आप चाहे अपने पडोसी के सिर पर फोडे या फिर दूसरे मोहल्ले किसी भी अनजान व्यक्ति के सिर पर फोडे...। बस शर्त ये ही है कि बाद की स्थिति का मुकाबला करने की आपमें क्षमता होनी चाहिऐ।‘ठीकरे’ की नियती तो फूटना ही है कहीं भी फूटेगा....लेकिन फूटेगा जरूर...!
हालाँकि शाब्दिक बाणों पर सवार होकर यह ‘ठीकरा’ कब किसके द्वारा किसके सिर पर फोडा जाऐगा इसका पता अच्छे- अच्छों को भी अन्तिम समय तक नहीं चल पाता है । इसका प्रत्यक्ष प्रमाण हमारे सामने ही है कहीं जाने की भला क्या जरूरत है। जब से लोकसभा के चुनाव में अडवाणी ब्रीगेड धराशाई हुई है तभी से उन्हीं के लोग हाथों में ‘ठीकरा’ लिऐ घूम रहे हैं कि कहाँ और किसके माथे पर फोडें.......? अडवाणी जी के सपनों को जो ग्रहण लगा है उसकी चिन्ता किसी को नहीं है........बस लगे हैं सब हार के कारणों का पोस्टमार्टम करने......और ढूंढ़ रहें हैं कोई ऐसा मजबूत सिर जिस पर इस ठीकरे को फोडा जाऐ ।
पार्टी अध्यक्ष हैं कि किसी का सिर ‘ठीकरे ’के सही निशाने पर आने ही नहीं देते हैं या यूं कहिऐ कि अभी सबके सामने कुछ कहना ही नहीं चाहते हैं क्योंकि घर की बात घर में ही रहे तो अच्छा है ।हाँ उन्होंने एक काम जरूर किया है कि थानेदार की तरह फरमान जरूर जारी कर दिया है कि कोई भी नेता सबके सामने मुँह नहीं खोलेगा......।अभी पोस्टमार्टम की रिपोर्ट आनी बाकी है रिपोर्ट आने पर मंथन किया जाऐगा....और इस मंथन की मथनी के चारों ओर जो मक्खन आऐगा उसकी जाँच करने के बाद ही कुछ कहा जा सकेगा......।
यशवंत सिन्हा हैं कि चुनाव के बाद से ही हाथों में ठीकरा लिऐ घूम रहें कि किसके सिर पर फोडूं....परन्तु राजनाथ ने सभी संभावित सिरों को फिलहाल सुरक्षा दे दी है। मगर सिन्हा हैं कि सब्र ही नहीं करपाऐ और दे दिया सभी पदों से स्तीफा....।जसवन्त सिंह हैं कि पहले से ही नहा घो कर तैयार बैठे हैं और शब्दों की जुगाली कर रहे हैं।
ऐसे में राज के नाथ ने भी सभी नेताओं के नकेल डालने का अच्छा तरीका निकाला है और फरमान जारी कर दिया कि कोई भी नेता घर के बाहर किसीसे कुछ नही कहेगा । अब यह एक अलग बात है कि अभी तो घर के अन्दर भी कोई सुनने वाला ही नहीं है तभी तो सभी अपने मन का गुबार निकालने की ताक में है लेकिन अब सभी के मुँह पर अनुशासन का ताला लगाने वालों ने ही लोकतन्त्र की दुहाई देते हुऐ चुनाव के समय एक-दूसरे के ऊपर कीचड उछालकर खूब जुबान चलाई थी लेकिन अब तू भी चुप मैं भी चुप......?
अब लोकतन्त्र तो केवल देश के लिऐ है उनकी पार्टी के लिऐ कोई है.....?मुझे तो लगता है कि अब इस पार्टी वालों को बी.जे.पी.से भारतीय जनता पार्टी नहीं बल्कि बहुत झगडालू पार्टी कहना चाहिऐ जो एक चुनावी हार को भी नहीं पचा पा रहे हैं।मेरे देश का रखवाला तो पहले ही ऊपर वाला ही था लेकिन अब इन राजनेताओं का रखवाला भी ऊपर वाला ही है क्योंकि अब तो वो ही है एक मात्र नाव क खिवैया...........?


डॉ.योगेन्द्र मणि

रुबर


नया नंगल पँजाब के आनँद भवन क्ल्ब के प्राँगण मे 11 -6-2009 को अक्षर चेतना मँच नया नँगल की ओर से एक साहित्यक समारोह का आयोजन किया गया1 इस समारोह का केन्द्र -बिन्दु पँजाब गज़लकारी के नामवर हस्ताक्षर श्री जसविन्दर् जी से इलाके के सहित्यकारोँ व बुद्धीजीवियोँ से रु -ब- -रु करवाना था1
समारोह की शुरुआत मे सभी उपस्थित जनोंने प्रसिद्ध रँगकर्मी स्व- श्री हबीब तनबीर एवं तीन हास्य कवियों स्व- श्र ओमप्राकाश् आदित्य- दिल्ली नीरज पुरी -दिल्ली एव स्व- श्री लाड् सिह गुर्जर -भोपल के आसामयिक निधन पर अफसोस प्रकट किया एवं दो मिनट का मौन धारण कर उन्हें श्रद्धा सुमन अर्पित किये1
समारोह का आयोजन अक्षर चेतना मंच के संरक्षक श्री राकेश नैयर जी की अध्यक्षता मे हुआ1 श्री देविन्दर शर्मा कार्यवाहक प्रधान अ़क्षर चेतना मँच दुआरा स्वागत भाशण के उपराँत कुछ कवियों श्री सुरजीत गग्ग - श्रीमति निर्मला कपिला-श्री देविन्दर शर्मा-श्री संजीव कुरालिया श्री राकेश वर्मा-श्री अजय शर्मा एवं श्री बलबीर सैणी दुआरा सँ क्षिप्त कविता पाठ किया गया1
इलाके के मशहूर गायक जो पंजाबी फिल्मों के लिये भी गाते हैं श्री पम्मी हँसपाल जी नेश्री जसविन्दर जी की मह्सहूर गज़लें गा कर आत्म विभोर किया जिनके बोल थे उनका साथ स- हरभजन जी ए- पी- आर-ओ ने तबला बजा कर दिया1
मनुखाँ च मोह कणी ना् रह ताँ दरख्ताँ नू दुखडे सुणाया कराँगे
इसके बाद डा- शमशेर मोही जी -रोपड व श्री सुनील चँदियाणवी-फरीदकोट ने गज़ल लेखन व लेखकों के बारे मे विद्धतापूर्ण भाषण दिया1 डा-शमशेर मोही जी ने गज़ल के उदगम एवं मैज़ूदा स्वरूप पर आलोचनात्मक टिप्पणी करने के इलावा जसविन्दर के लेखकीय जीवन एवं लेखन स्तर के बारे में श्रोताओँ को अवगत करवाया1
तदोपराँत श्री जसविन्दर जी नी अपनी गज़लें सुनाई जिन मे प्रमुख थीं
सिरलत्थाँ दी भीड सी मोड कसूता आ गया
सियाणे सियाणे मुड गये झल्ले झल्ले रह गये

थाई खडी उडीकदी यात्रियाँ दी भीड
लीहाँ छड असमान ते दौड रही है रेल्

मेरी थावें लेक जो भुगतण सजावाँ कौण ने
फेर वी मेरे वास्ते करदे दुआवाँ कौण ने

असीं दिल छड गये होईये अजिहा वी नहीँ लगदा
पता नहीं फेर क्यों साडा किते वी दिल नहीं लगदा

श्री जसविन्दर जी से श्रोताओं ने गज़ल लेखन विद्या की बारीकियों-सहित्य सभाओं के दुआरा निभाये जाने वाले रोल उनकी गज़लों के भाव इत्यादि के बारे मे सवाल जवाब किये जिनका जसविन्दर जी ने बाखुअबी उत्तर दिया1कोई उपनाम ना रखने के सँदर्भ मे उनका जवाब था कि शुरू मे वो छोटी उमर से ही जसविन्दर के नाम से लिखते आये हैं और उन्होँने कभी तखल्लुस लगाने की आवश्यकता महसूस नहीं की
अक्षर चेतना मँच के पदाधिकारियों ने श्री जसविन्दर जी और डा- शमशेर मोही जी को समृति चिन्ह भेँट किये1 मँच संचालक्की भूमिका का निर्वाह राकेश वर्मा दुआरा किया गया1
इस समारोह मे अन्य उपस्थित्त जनो मे दिल्ली युनिवर्सिटी से रिटायर प्रोफेसर व संपादक समाज धर्म पत्रिका श्री भोला नाथ कश्यप प्रोफेसर योगेश सूद रंगकर्मी श्री फुलवँत मनोचा श्री जसविन्दर सिह प्रबन्धक उपकरन श्री विजय शर्मा नंगल श्री अमृतपाल धीमान श्री अमर जीत भल्लडी कवंर देव सिह एवं अमर पोसवाल अमृत सैणी ललित मित्तल अमरजीत बेदाग श्री गुर्प्रीत गरेवाल श्री एम एम कपिला अम्बिका दत्त एस डी शर्मा गुलशन नैयर व श्रीमति सुधा नैयर संजय सनन अजय भाटिया सी एल विर्दी मोहेन्द्र सिह परमजीत महराल राजीव ओहरी इसके अतिरिक्त प्रेस से आये सदस्य आदि उपस्थित थे धन्यवाद प्रस्ताव श्री अजय शर्मा दुआरा पेश किया गया1
आज पहली बार हुआ कि महिला सदस्यों की उपस्थिती कम रही 1
राकेश वर्मा1

अक्षर चेतना मँच नंगल ही नहीं पूरे पंजाब मे अपने भव्य आयोजनों के लिये जाना जाता है 1इस बात पर भी विचार किया जा रहा है कि इसकी पहचान् पूरे भारत से करवाई जायेगी1 इसकी स्थापना मे सब से अधिक योगदान डा. डी पी सिंह प्रोफेसर फिज़िक्स शिवालिक कालेग नंगल का है जो आजकल कैनेडा गये हैं उनके बाद श्री दविन्द्र शर्मा जी- राकेश् वर्मा जी और संजीव कुरालिया जी बडी कुशलता और लगन से चला रहे हैं1 ये मंच अब तक पंजाब के कई जाने पहचाने सहित्यकारों को सम्मानित कर चुका है1
आने वाले दिनों मे शायद ये भारत का सब से बडा साहित्यिक आयोजन मंच होगा1

शुक्रवार, 12 जून 2009

कलम की यात्रा


थक गई कलम,
शब्द अर्थहीन हो गए,
सूख गई स्याही,
रचनाएं भी अब निष्प्रभावी हो गईं।
हो गया क्या यह सब?
क्यों हो गया यह सब?
समय की गति के आगे,
हर मंजर संज्ञा-शून्य हो गया है अब।
याद आता है अभी भी
इस भूलने वाली अवस्था में,
जब थाम कर हाथों में कलम,
पहली बार रची थी कुछ पंक्तियाँ,
सजाई थी कागज पर एक कविता।
बाल मन, बाल सुलभ उड़ान को
मिल गए थे कल्पनाओं के पर,
कभी सूरज, कभी चन्दा
उतर रहे थे आसमान से जमीं पर।
कभी तोता, मैना सजते,
कभी उड़ती थीं रंगीन तितलियाँ
कागज के जंगल पर।
कभी सरदी, कभी गरमी
तो कभी बारिश की रिमझिम होती रहती,
ऊंचे पहाडों, हरे-भरे मैदानों में दौड़ते रहते,
उड़ते रहते हम
सपनों में आती परियों के साथ
और यूँ ही
बाल मन की कल्पनाएँ सजती रहतीं।
समय उड़ता रहा,
वक्त गुजरता रहा,
परियों, तितलियों, तोता, मैना का संग
कहीं पीछे छूट गया।
यौवन कलम पर चढ़ा,
जवानी रचनाओं ने भी पाई,
युवा मन ने अपनी रचनाओं को
नवयौवना की चुनरी ओढाई।
मौसम, गगन विशाल,
वो रिमझिम बरसात,
जवाँ हो गया हर शमां,
जवाँ हो गए हर जज्बात।
शब्दों का बचपना
अब हँसी रूप धर रहा था,
रच रहा था
नारी के सुकोमल अंगों की नई परिभाषाएं,
सजा रहा था
श्रृंगार रस में पगी कवितायें।
सलोने मुखड़े की सादगी का दीवानापन,
सावन के झूले, बारिश में भीगे तन-मन।
कभी रात की तन्हाई,
कभी दो पल का मिलन।
झील सी आँखें, घनेरी जुल्फें,
छनकती पायल,
खनकती चूडियाँ,
हांथों की मेंहदी,
माथे की बिंदिया को सजाता, संवारता रहा।
लेकिन वक्त ने फ़िर करवट बदली,
कलम ने फ़िर
उम्र की दूसरी राह पकडी।
बिता कर एक अल्हड जोशीली दुनिया,
परिपक्वता के सागर में समा रही थी,
नवयौवना के हाव-भाव,
अंगों-प्रत्यंगों पर
हजार-हजार बार चली कलम
अपनी सार्थकता दर्शा रही थी।
अब रचनाओं में भविष्य के सपने नहीं,
किसी हसीन ख्वाब की तस्वीर नहीं,
मन का गुबार झलकता था,
अव्यवस्थित हो रहे ढांचे के प्रति
रोष झलकता था।
गरीबी, भूख, बेकारी, दंगे
और भी न जाने कितनी समस्याओं को
कविता की लड़ियों में पिरोया था,
अपने आसपास की प्रदूषित हवा को
शुद्ध करना चाहा था।
अब बुरा लगता था
यूँ नवयुवक-युवतियों का
बेबाक होकर चलना,
बांहों में बाँहें डाले गलियों में घूमना.
नहीं भाता था अब
समाज का चलन,
नहीं रास आती थी अब जीने की कला।
सुबह से शाम तक भटकना,
मशीन बने रहना और फ़िर
अगली सुबह से
वही क्रिया-कर्म दोहराना।
युवावस्था की आग जो विचरती थी
स्वप्लिन दुनिया में
उसे अब हकीकत की जमीं पर लाया जा रहा था।
सैकड़ों रचनाएँ, हजारों पन्ने रंग गए,
आज की अव्यवस्था पर सज गए
पर कुछ भी न बदल सका,
नहीं बदल सका
मानव का मशीन बनना,
नहीं रुक सका जुल्म
गरीबों पर अमीरों का,
सरकारें वैसे ही खामोश सोती रहीं,
नव-वधुएँ तड़प-तड़प कर
आग में खोती रहीं।
मिटती रही हमेशा की तरह अजन्मी बिटिया,
बढ़ती रही और भी
लोगों की अतृप्त लालसा।
कुछ भी तो नहीं बदल सका मैं,
समाज की बुराइयों, गंदगी को
मिटा न सका मैं।
समझ रहा था
कितना आसन है यूँ
शब्द क्रांति के सहारे दुनिया बदलना,
कितना सरल होगा इस तरह
लोगों को प्रेम-स्नेह में ढालना।
मिट सकेगी कविताओं, रचनाओं के सहारे
लोगों की भूख-प्यास,
नंगे बदन को ढंकने और
अपने घर की आस।
पर यह एक भूल थी,
कुछ भी तो नहीं बदला जा सकता
मात्र कुछ शब्दों के सहारे,
मन का बहलाव,
दिल की भडास को ही
मिटाया जा सकता है इसके सहारे।
फ़िर क्यों रंगे जा रहा हूँ मैं
कागज़ पर कागज़?
क्यों नहीं समझ पा रहा हूँ
आज वक्त की नजाकत?
आह! अब सोचता हूँ
उस नन्हीं सी,
बचपन की कलम के बारे में,
जो रचा करती थी सुनहरा संसार,
चारों ओर बस प्यार ही प्यार।
फ़िर वैसी ही कलम,
वही जादुई शब्दों की जरूरत है,
वही चाहत, वैसी कल्पना की जरूरत है।
इस परिपक्व कलम ने
बस लोगों का रोना ही रचा है,
दुःख व करुणा को ही लिखा है,
बिला-वजह के शब्द जाल को बुना है।
रोने-हंसने-जीने-मरने,
एक-एक पल का हिसाब रखा है।
लोगों के सीने में दफ़न दर्द को
उकेर कर कागजों पर रंगे
वो कलम नहीं चाहिए,
निरर्थक, नाकाम शब्दों को
मात्र रचती रहे
वो कलम नहीं चाहिए।
शायद यही जिन्दगी की थकान,
टूटन की पहचान है,
लगता है अब इस कलम का
यही आखिरी पड़ाव है,
या कहें कि
अब इस कलम का,
इस जिन्दगी का यही ठहराव है।

गुरुवार, 11 जून 2009

प्रथम कविता प्रतियोगिता की सर्वश्रष्ठ कविता - पुकार " कवि कुलवंत सिंह जी की "

हिन्दी साहित्य मंच की प्रथम कविता प्रतियोगिता के सफल समापन के पश्चात द्वितीय कविता प्रतियोगिता की घोषणा जल्द ही की जायेगी ।
प्रथम कविता प्रतियोगिता में साहित्य प्रेमियों ने जिस तरह से बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया । वह प्रशंसनीय है । इस कविता प्रतियोगिता में हमें उम्मीद से अधिक रचनाएं प्रप्त हुई । परन्तु दुखद बात यह रही कि कई प्रतिभागियों ने अपनी रचना हिन्दी फांट में नहीं भेजी । जिससे वह रचनाएं अस्वीकार कर दी गयी । अतः आप सभी से अनुरोध है कि अपनी रचना हिन्दी फांट में ही भेजें ।
प्रथम कविता प्रतियोगिता में आयी सभी कविताओं का प्रकाशन हिन्दी साहित्य मंच पर क्रमिक रूप से किया जायेगा । सर्वप्रथम विजेता कविताओं का प्रकाशन किया जा रहा है । प्रथम कविता प्रतियोगिता में प्रथम स्थान पर रही कविता " पुकार " कवि कुलवंत सिंह जी की आज प्रकाशित की जा रही है । इस कविता ने प्रथम चरण में ( 10.70) के साथ सातवें स्थान पर रही । द्वितीय चरण में यह कविता (9.70) अंको के साथ प्रथम स्थान पर रही । (अधिकतम अंक १० थे द्वितीय चरण में ) । और सर्वश्रेष्ठ कविता चुनी गयी ।

जीवन परिचय - कवि कुलवंत सिंह
जन्म - ११ जनवरी , रूड़की , उत्तराखण्ड
शिक्षा- बी.ई ( आई आई टी , रूड़की ) , एमबीए( इग्नू से)
प्रकाशित पुस्तकें -निकुंज( कविता संग्रह), चिरंतन ( कविता संग्रह ), कई प्रमुख पत्रिकाओं में लेख और कविताएं प्रकाशित ।
सम्मान- कवि भूषण सम्मान , अभिव्यक्ति सम्मान २००७, भारत गर्व सम्मान, बाबा अंबेडकर मेडल , दिल्ली ।
रूचियां- मंचीय कार्यक्रम , कवि सम्मेलन, कविता लेखन , इत्यादि ।
व्यवसाय - नौकरी
संपर्क- २ डी , बद्रीनाथ बिल्डिंग, अनुशक्ति नगर,मुंबई -४००९४
ई-मेल - singhkw@barc.gov.in / kavi.kulwant@gmail.com

पुकार - सर्वश्रेष्ठ कविता

सहिष्णुता की वह धार बनो
पाषाण हृदय पिघला दे ।
पावन गंगा बन धार बहो
मन निर्मल उज्ज्वल कर दे ।
कर्मभूमि की वह आग बनो
चट्टानों को वाष्प बना दे ।
धरती सा तुम धैर्य धरो
शोणित दीनों को प्रश्रय दे ।
ऊर्जित अपार सूर्य सा दमको
जग में जगमग ज्योति जला दे ।
पावक बन ज्वाला सा दहको
कर दमन दाह कंचन निखरा दे ।
अति तीक्ष्ण धार तलवार बनो
भूपों को भयकंपित रख दे ।

पीर फकीरों की दुआ बनों
हर दरिद्र का दर्द मिटा दे ।
शौर्य पौरुष सा दिखला दो
दमन दबी कराह मिटा दे ।

अंबर में खीचित तड़ित बनो
जला जुल्मी को राख कर दे ।
सिंहों सी गूंज दहाड़ बनो
अन्याय धरा पर होने न दे ।

बन रुधिर शिरा मृत्युंजय बहो
अन्याय धरा पर होने न दे ।
अपमान गरल प्रतिकार करो
आर्त्तनाद कहीं होने न दे ।

बन प्रलय स्वर हुंकार भरो
शासक को शासन सिखला दे ।
पद दलितों की आवाज बनो
मूकों का चिर मौन मिटा दे ।

कर असि धर विषधर नाश करो
सत्य न्याय सर्वत्र समा दे ।
सृष्टि सृजन का साध्य बनो
विहगों को आकाश दिला दे ।
बन शीतल मलय बहार बहो
हर जीवन को सुरभित कर दे ।