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शुक्रवार, 5 फ़रवरी 2010

घर आने की खुशी .......................संस्मरण [नीशू तिवारी ]


बचपन में जब इलाहाबाद भैया के साथ पढ़ाई के लिए जाना हुआ तो मां का साथ छूट गया ......पर शहर जाने की खुशी में यह दर्द कम ही महसूस हुआ ......पहली बार ट्रेन का सफर करने का इंतजार लिए स्टेशन पर बैठा चार घण्टे काटना बेहद मुश्किल हो रहा था .......मई के महीने में तपती धूप से बचने के लिए पेड़ों की छाया में गर्म हवा का थपेड़ा गालों पर किसी जोरदार थप्पड़ से कम नहीं लगा......जैसे तैसे ट्रेन आयी ( पैसेन्जर) हम और भैया चढ़ गये ....सारी सीटे भरी थी पहले से ही और जहां सामान रखा जाता है वहां भी लोगों चढ़े थे ....यह देख भैया किसी से कह मुझे बैठा दिया और खुद खड़े रहे ( मैं खिड़की वाली सीट चाहता था जहां से बाहर का नजारा ले सकूँ ) ।रूकते चलते धीरे- धीरे ट्रेन इलाहाबाद के प्रयाग स्टेशन पर पहुंचने वाली होती है ( बीच-बीच में भैया सब जगहों के बारे में बताते जाते जैसे- गंगा नदी , फाफामऊ)। इस स्टेशन पर उतरना है भैया ने कहा - सभी अपने सामान( बोरी जिसमें चावल या फिर घर से लायी हुई खाने की वस्तुएं होती हैं ) समेटने लगे । सबके बीच में बहुत छोटा था फिर भी बेढ़गी लाइन में खड़ा हो गया (भैया ने हाथ पकड़ लिया मेरा और कहा जब सब उतर जाये तब उतरेगें) । हम भी उतरे पूरा स्टेशन शोर गुल से लबरेज हो गया ।

अब हम भी चल दिये अपने कमरे की तरफ , रास्ते में कुछ दूर पर ही रिक्शा मिलता था, वहा पहुंचे । एक कोई विद्यालय था ,कुछ लड़के खड़े हो चाय के साथ सिगरेट पी रहे थे तो कुछ किसी बात पर ठहाका लगा रहे थे यह देख मुझे बहुत ही अजीब लगा । रिक्शे से रूम पर पहुंचे ।

पहली बार घर से इतनी दूर मैं था ........सफर तो कट गया अब मां और अपने घर और गांव की याद आने लगी ...भैया ने कहा कुछ खा लो पर मैं न खा सका पता नहीं बस रोने का मन हो रहा था। साथ भैया थे इस लिए नहीं रोया ...वे किसीकाम से बाहर गये मैं सो गया था शाम हो चुकी थी इस अजीब माहौल में कुछ भी अच्छा न लग रहा था , जब भैया वापस आये तो मैं रोने लगा कहा कि घर जाना है तो भैया ने कह दिया कि ठीक है चलेंगें....... फिर चार दिनों तक रोने धोने के बाद भैया को वापस आना ही पड़ा मेरी जिद के आगे । एक बार फिर से मैं खुश हुआ घर आने के लिए शायद जितना मैं इलाहाबाद जाने के लिए ना हुआ था ।

नाम- निशांत त्रिपाठीआपका जन्म गांव पूरे श्री कान्त , प्रतापगढ़ , उत्तर प्रदेश में ८ अगस्त सन् १९८५ को हुआ । आपकी प्रारंभिक शिक्षा प्रतापगढ़ में हुई । ८वीं के बाद आप इलाहाबाद आ गये । स्नातक की शिक्षा इलाहाबाद विश्वविद्यालय से प्राप्त की । पत्रकारिता में आपने परास्नातक माखनलाल चतुर्वेदी विश्वविद्यालय , नोएडा परिसर से प्राप्त किया । कविता ,गीत , गजल इत्यादि लेखन में आप रूचि रखते हैं ।

कविता प्रतियोगिता में सांत्वना पुरस्कार हेतु स्थान प्राप्त ----------मैं चाहूंगी तुमसे कभी मिलूं! -{कविता}--सरस्वती प्रसाद

अगर तुमने कभी , नदी को गाते नहीं
प्रलाप करते हुए देखा है
और वहाँ कुछ देर ठहर कर
उस पर गौर किया हैं
तो मैं चाहूंगी तुमसे कभी मिलूं!

अगर तुमने पहाडों के टूट - टूट कर
बिखरने का दृश्य देखा हैं
और उनके आंखों की नमी महसूस की है
तो मैं चाहूंगी तुम्हारे पास थोड़ी देर बैठूं !

अगर तुमने कभी पतझड़ की आवाज़ सुनी है
रूदन के दर्द को पहचाना है
तो मैं तुम्हे अपना हमदर्द मानते हुए
तुमसे कुछ कहना चाहूंगी!

लेकिन मुझे यही नहीं पता ,
तुम हो कहाँ?
मैं तुमसे कहाँ मिलूं ?
अजनबी चेहरों की भीड़ से निकलकर
कभी सामने आओ...
तो मैं तुम्हारा स्वागत करूंगी!

ज़िंदगी प्रतिपल सरकती जा रही है
और मुझे तुम्हारी प्रतीक्षा है
अँधेरा घिरते ही,
उम्मीद का दिया जला लेती हूँ
जाने कब, कहाँ पलकें बंद हो जाएं...
इससे पहले मैं चाहूंगी
तुमसे अवश्य मिलूं...
तुम्हें जी भर कर देख लूँ....