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शुक्रवार, 5 फ़रवरी 2010

घर आने की खुशी .......................संस्मरण [नीशू तिवारी ]

बचपन में जब इलाहाबाद भैया के साथ पढ़ाई के लिए जाना हुआ तो मां का साथ छूट गया ......पर शहर जाने की खुशी में यह दर्द कम ही महसूस हुआ ......पहली बार ट्रेन का सफर करने का इंतजार लिए स्टेशन पर बैठा चार घण्टे काटना बेहद मुश्किल हो रहा था .......मई के महीने में तपती धूप से बचने के लिए पेड़ों की छाया में गर्म हवा का थपेड़ा गालों पर किसी जोरदार थप्पड़ से कम नहीं लगा......जैसे तैसे ट्रेन आयी ( पैसेन्जर) हम और भैया चढ़ गये ....सारी सीटे भरी थी पहले से ही और...

कविता प्रतियोगिता में सांत्वना पुरस्कार हेतु स्थान प्राप्त ----------मैं चाहूंगी तुमसे कभी मिलूं! -{कविता}--सरस्वती प्रसाद

अगर तुमने कभी , नदी को गाते नहीं प्रलाप करते हुए देखा है और वहाँ कुछ देर ठहर करउस पर गौर किया हैंतो मैं चाहूंगी तुमसे कभी मिलूं!अगर तुमने पहाडों के टूट - टूट कर बिखरने का दृश्य देखा हैंऔर उनके आंखों की नमी महसूस की है तो मैं चाहूंगी तुम्हारे पास थोड़ी देर बैठूं !अगर तुमने कभी पतझड़ की आवाज़ सुनी है रूदन के दर्द को पहचाना हैतो मैं तुम्हे अपना हमदर्द मानते हुएतुमसे कुछ कहना चाहूंगी!लेकिन मुझे यही नहीं पता , तुम हो कहाँ?मैं तुमसे कहाँ मिलूं ?अजनबी चेहरों की भीड़ से निकलकरकभी सामने आओ...तो मैं तुम्हारा स्वागत करूंगी!ज़िंदगी प्रतिपल सरकती जा रही हैऔर...