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सोमवार, 21 फ़रवरी 2011

विकराल मुख और मधुर वाणी…...(सत्यम शिवम)

विकराल मुख और मधुर वाणी, रुप विमुख पर अधरों का ज्ञानी।संतृप्त रस,मधुता का पुजारी,क्रंदन,रोदन का विरोध स्वभाव,मन को तज,जिह्वा का व्यापारी,मुख पे भर लाया घृणित भाव। वाणी की प्रियता से है सब जग जानी।विकराल मुख और मधुर वाणी। मुख पे ना अनोखा अलंकार,मधुता है वाणी का श्रृँगार,नैनों में ना विस्मित संताप,होंठों पे है मधु भावों का जाप। नैनों ने अधरों की महता मानी।विकराल मुख और मधुर वाणी। वाणी से सुकुमार राजकुमार,छवि की परछाई से गया वो हार,अधरों की मोहकता से...