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गुरुवार, 15 अक्टूबर 2009

सफ़र में हूँ अब तो सफर काटता है (जतिन्दर परवाज़)

वो नज़रों से मेरी नज़र काटता हैमुहब्बत का पहला असर काटता हैमुझे घर में भी चैन पड़ता नही थासफ़र में हूँ अब तो सफर काटता हैये माँ की दुआएं हिफाज़त करेंगीये ताबीज़ सब की नज़र काटता हैतुम्हारी जफ़ा पर मैं ग़ज़लें कहूँगासुना है हुनर को हुनर काटता हैये फिरका-परसती ये नफरत की आंधीपड़ोसी, पड़ोसी का सर काटता...