वैसे तो भारतेंदु जी की सभी रचनाएँ मुझे प्रिय है, लेकिन उनकी एक कविता जो मेरे ह्रदय को छूती है उसे मै आपके समक्ष प्रस्तुत कर रहा हूँ !
निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल।
बिनु निज भाषा-ज्ञान के, मिटत न हिय को सूल।।
अँग्रेजी पढ़ि के जदपि, सब गुन होत प्रवीन।
पै निज भाषा-ज्ञान बिन, रहत हीन के हीन।।
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निज भाषा उन्नति बिना, कबहुँ न ह्लै है सोय।
लाख उपाय अनेक यों, भले करे किन कोय।।
इक भाषा इक जीव इक, मति सब घर के लोग।
तबै बनत है सबन सों, मिटत मूढ़ता सोग।।
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और एक अति लाभ...