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शनिवार, 28 अगस्त 2010

एक कविता "भारतेंदु की" सन्तोष कुमार "प्यासा"

वैसे तो भारतेंदु जी की सभी रचनाएँ मुझे प्रिय है, लेकिन उनकी एक कविता जो मेरे ह्रदय को छूती है उसे मै आपके समक्ष प्रस्तुत कर रहा हूँ ! निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल। बिनु निज भाषा-ज्ञान के, मिटत न हिय को सूल।। अँग्रेजी पढ़ि के जदपि, सब गुन होत प्रवीन। पै निज भाषा-ज्ञान बिन, रहत हीन के हीन।। ************************************* निज भाषा उन्नति बिना, कबहुँ न ह्लै है सोय। लाख उपाय अनेक यों, भले करे किन कोय।। इक भाषा इक जीव इक, मति सब घर के लोग। तबै बनत है सबन सों, मिटत मूढ़ता सोग।। ************************************ और एक अति लाभ...