लोग अक्सर मुझपे फिकरे कसते हैंपडा रहता है टूटी खाट मैंबुन क्यों नही लेता इसे फिर सेकैसे कहूँ क्यों नही बुन लेता ?सोचता हूँ तो हाथ कांपने लगते हैये खाट और रिश्ते मुझे एक से लगते हैं !मैंने अपने हर नए रिश्ते की तरहकितने शौक से बुना था हर तानाकितने सुंदर लगते थे नए-नए !जिंदगी में हर रिश्ता इस ताने जैसा ही हो गयादोनों का न जाने कौन सा ताना कब टूट गयासाथ-साथ रहते हुए भी मुझे पता ना चलाधीरे-धीरे एक-एक कर सारे ताने टूट गए !रह गए कुछ टूटे रिश्ते और टूटे हुए ख्वाबटूटी हुई खाट के टूटे हुए तानों की तरह !उलझ गया हूँ इन टूटे हुए रिस्तो मेंमैं अब फिर से नही...