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सोमवार, 1 जून 2009

व्यंग्य /मलाईदार -मलाई

मलाईदार -मलाईजब से मनमोहनी सरकार ने दोबार से होश संभालन शुरु किया, तभी से समाचार पत्रों में मलाईदार विभाग बडी ही चर्चा का विषय रहा है।जनता तो मनमोहन सिंह की मोह-मा्या में फंस गई लेकिन सरकारी बैसाखियां हैं कि मलईदार मंत्रालयों के दरिया में डुबकी लगाने की तैयारी में जुट गई थी।नतीजा सामने है कि मनमोहन की मोहनी सूरत पर मुस्कान आने से पहले ही गायब हो गई और मंत्रियों की घोषणा वे खुले मन से नहीं कर पाऐ।पिछली बार जब सरकार बनाई थी तो कभी लेफ्ट गुर्राता था तो कभी राइट.....। बडी मुश्किल से संसदीय कुनबे की संभाल पूरे पाँच साल तक की जा सकी...?इसबार जनता ने...

मलाईदार -मलाई (व्यंग्य)

जब से मनमोहनी सरकार ने दोबार से होश संभालन शुरु किया, तभी से समाचार पत्रों में मलाईदार विभाग बडी ही चर्चा का विषय रहा है।जनता तो मनमोहन सिंह की मोह-मा्या में फंस गई लेकिन सरकारी बैसाखियां हैं कि मलईदार मंत्रालयों के दरिया में डुबकी लगाने की तैयारी में जुट गई थी।नतीजा सामने है कि मनमोहन की मोहनी सूरत पर मुस्कान आने से पहले ही गायब हो गई और मंत्रियों की घोषणा वे खुले मन से नहीं कर पाऐ।पिछली बार जब सरकार बनाई थी तो कभी लेफ्ट गुर्राता था तो कभी राइट.....। बडी मुश्किल से संसदीय कुनबे की संभाल पूरे पाँच साल तक की जा सकी...?इसबार जनता ने कूछ दमदारी से...

आज मेरे शहर ने मुझे रुला दिया.....[एक कविता ]-विजय कुमार सप्पत्ति

आज मेरे शहर ने मुझे रुला दिया..... कुछ याद दिला गया , कुछ भुला दिया , मुझको ; मेरे शहर ने रुला दिया..... यहाँ की हवा की महक ने बीते बरस याद दिलाये इसकी खुली ज़मीं ने कुछ गलियों की याद दिलायी.... यहीं पहली साँस लिया था मैंने , यहीं पर पहला कदम रखा था मैंने ... इसी शहर ने जिन्दगी में दौड़ना सिखाया था. आज मेरे शहर ने मुझे रुला दिया..... दूर से आती हुई माँ की प्यारी सी आवाज , पिताजी की पुकार और भाई बहनो के अंदाज.. यहीं मैंने अपनों का प्यार देखा था मैंने... यहीं मैंने परायों का दुलार देख था मैंने ..... कभी हँसना और कभी रोना भी...