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शुक्रवार, 16 अप्रैल 2010

अँधियारा और आशा.....(कविता)......जोगिन्दर

थका हारा बैठा मुसाफिरजाने कौन कहाँ से आयाऔरदरवाजा खटखटाया ...मैं न हिलूंगामैं नहीं खोलूँगा द्वारमैंने ठान लिया थामुझे मालूम थाइस अंधियारे द्वार कोई नहीं आया होगाशायद दरवाजा खुद ब खुद हवाओं ने ही खटखटाया होगामैं सोचता रहामैं न हिलूंगा अबअब मैं थक गया हूँये अँधियारा अबमन भाने लगा हैये घर का एक कोनाअब यही पूरा घर बन गया हैमैं न हिलूंगा अबमैं न जाऊंगा उस पार ।उस पार न जाने क्या होगाहोगा अँधियारा घनाहोऊंगा मैं फिर से अकेलातो क्यों जाऊँ मैंमुझे अब इसी...

हड़ताल....(कहानी).....मनीष कुमार जोशी

‘क्या मैं अंदर आ सकता हॅू।’ तेजस ने नीले रंग की ड्रेस पहने हुए दरवाजा खोलकर कहा। यस । कम इन । ’ मैंनेजर ने कम्प्यूटर पर काम करते हुए तेजस की ओर देख बिना कहा।   तेजस मैनेजर का उत्तर सुनकर अंदर आ गया। नीली ड्रेस पहने और माथे पर थोड़े बहुत बाल बिलकुल आज की उम्र के नौजवान की तरह ही था तेजस । मैनेजर की टेबिल की नजदीक पहुंचते ही मैनेजर ने बैठने के लिए कह दिया। बिलकुल शांति का वातावरण था। फैक्ट्री में मशीनो की घड़ घड़ की आवाज यहां बिलकुल...