
थका हारा बैठा मुसाफिरजाने कौन कहाँ से आयाऔरदरवाजा खटखटाया ...मैं न हिलूंगामैं नहीं खोलूँगा द्वारमैंने ठान लिया थामुझे मालूम थाइस अंधियारे द्वार कोई नहीं आया होगाशायद दरवाजा खुद ब खुद हवाओं ने ही खटखटाया होगामैं सोचता रहामैं न हिलूंगा अबअब मैं थक गया हूँये अँधियारा अबमन भाने लगा हैये घर का एक कोनाअब यही पूरा घर बन गया हैमैं न हिलूंगा अबमैं न जाऊंगा उस पार ।उस पार न जाने क्या होगाहोगा अँधियारा घनाहोऊंगा मैं फिर से अकेलातो क्यों जाऊँ मैंमुझे अब इसी...