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मंगलवार, 4 जनवरी 2011

शरद ॠतु कि अगुवाई में.............(सत्यम शिवम)

शरद ॠतु कि अगुवाई में,
पेड़ों के पते सिहर गए,
ठंडक ने ठिठुराया तन को,
अकुलाहट के सारे पल गए।

इक सुहानी सुबह,
हौले हौले बहती हवाएँ,
प्रकृति की मधुरता को देख,
पंक्षियों ने सुरीले गीत गाए।

कँपकपाने लगी ठँडक से तन,
नदियों में जल भी जम गए।


शरद ॠतु कि अगुवाई में,
पेड़ों के पते सिहर गए,

मौसम ये बड़ा निराला है,
अब आसमान भी काला है,
झम झम बारिश होने वाली,
शरद ॠतु का ये पाला है।

सब घर में है छिप गए,
जैसे वक्त सारे थम गए।

शरद ॠतु कि अगुवाई में,
पेड़ों के पते सिहर गए,

स्वेटर पहनो,ओढ़ो कम्बल,
घर में अलाव भी गया है जल,
रहना इस मौसम में जरा सम्भल,
ऊनी कपड़े है बस ठंडक का हल।

जल की इक बूँद पड़ी जो तन पर,
हम न जाने क्यों सहम गए। 

शरद ॠतु कि अगुवाई में,
पेड़ों के पते सिहर गए,

ठंडक ने ठिठुराया तन को,
अकुलाहट के सारे पल गए।