
शरद ॠतु कि अगुवाई में,
पेड़ों के पते सिहर गए,
ठंडक ने ठिठुराया तन को,
अकुलाहट के सारे पल गए।
इक सुहानी सुबह,
हौले हौले बहती हवाएँ,
प्रकृति की मधुरता को देख,
पंक्षियों ने सुरीले गीत गाए।
कँपकपाने लगी ठँडक से तन,
नदियों में जल भी जम गए।
शरद ॠतु कि अगुवाई में,पेड़ों के पते सिहर गए,
मौसम ये बड़ा निराला है,अब आसमान भी काला है,झम झम बारिश होने वाली,शरद ॠतु का ये पाला है।
सब घर में है छिप गए,जैसे वक्त सारे थम गए।
शरद ॠतु कि अगुवाई में,पेड़ों के पते...