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सोमवार, 23 अगस्त 2010

त्रिपदा अगीत ------डाo श्याम गुप्त.

१..अंधेरों की परवाह कोई, न करे, दीप जलाता जाए; राह भूले को जो दिखाए | २.सिद्धि प्रसिद्धि सफलताएं हैं,जीवन में लाती हैं खुशियाँ;पर सच्चा सुख यही नहीं है| ३.चमचों के मजे देख हमने ,आस्था को किनारे रख दिया ;दिया क्यों जलाएं हमीं भला| ४.जग में खुशियाँ उनसे ही हैं,हसीन चेहरे खिलते फूल;हंसते रहते गुलशन गुलशन | ५.मस्त हैं सब अपने ही घरों में ,कौन गलियों की पुकार सुने;दीप मंदिर में जले कैसे...