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बुधवार, 30 दिसंबर 2009

फिर एक बार ///कविता

फिर एक बार_________आओ....बदल डालें दीवार परलटके कलेन्डरफिर एक बार,इस आशा के साथकि-शायद इसबार हमें भी मिलेगाअफसर का सद व्यवहारनेता जी का प्यारकिसी अपने के द्वारानव वर्ष उपहार.सारे विरोधियों कीकुर्सियां हिल जाऐंमलाईदार कुर्सीअपने को मिल जाऐ.सुरसा सी मँहगाईरोक के क्या होगा ?चुनावी मुद्दा है अपना भला होगा .जनता की क्यों सोचें ?उसको तो पिसना हैलहू बन पसीनाबूँद-बूँद रिसना हैरिसने दो, देश-हित मेंबहुत ही जरूरी हैइसके बिन सबप्रगति अधूरी है.प्रगति के पथ मेंएक साल जोड दोविकास का रथ लाकरमेरे घर पे छोड दो.बदल दो कलेन्डरफिर एक बारआगत का स्वागतविगत को प्रणामफिर...

हिन्दी साहित्य मंच लाया " चौथी कविता प्रतियोगिता " .....................भागीदारी कर जीतिये इनाम

हिन्दी साहित्य मंच "चतुर्थ कविता प्रतियोगिता" मार्च माह में आयोजित कर रहा है। इस कविता प्रतियोगिता के लिए किसी विषय का निर्धारण नहीं किया गया है अतः साहित्यप्रेमी स्वइच्छा से किसी भी विषय पर अपनी रचना भेज सकते हैं । रचना आपकी स्वरचित होना अनिवार्य है । आपकी रचना हमें फरवरी माह के अन्तिम दिन तक मिल जानी चाहिए । इसके बाद आयी हुई रचना स्वीकार नहीं की जायेगी ।आप अपनी रचना हमें " यूनिकोड या क्रूर्तिदेव " फांट में ही भेंजें । आप सभी से यह अनुरोध है कि मात्र एक ही रचना हमें कविता प्रतियोगिता हेतु भेजें ।प्रथम द्वितीय एवं तृतीय स्थान पर आने वाली रचना...

शाम

शाम की छाई हुई धुंधलीचादर से ढ़क जाती हैं मेरी यादें , बेचैन हो उठता है मन, मैं ढ़ूढ़ता हूँ तुमको , उन जगहों पर , जहां कभी तुम चुपके-चुपके मिलने आती थी , बैठकर वहां मैं महसूस करना चाहता हूँ तुमको , हवाओं के झोंकों में , महसूस करना चाहता हूँ तुम्हारी खुशबू को , देखकर उस रास्ते को सुनना चाहता हूँ तुम्हारे पायलों की झंकार को , और देखना चाहता हूँ टुपट्टे की आड़ में शर्माता तुम्हारा वो लाल चेहरा , देर तक बैठ मैं निराश होता हूँ , परेशान होता हूँ कभी कभी , आखें तरस खाकर मुझपे, यादें बनकर आंसू उतरती है गालों पर , मैं खामोशी से हाथ बढ़ाकर , थाम...