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शनिवार, 25 अप्रैल 2009

माँ की पुकार

माँ की पुकारबेटी जब से ससुराल गयी हैमेरी सुध ना किसी ने जानी हदिल मै उसकी यादें हैंऔर आँखों मे पानी हैसुनसान है घर का कोना कोनाजहाँ गूंजते थे उसके कहकहेना घर की रोनक वही रहीना दिवरों के रंग ही वो रहेपापा तेरे इक कोने मेचुपचाप से बैठे रहते हैंयाद तुझे कर कर के बेटीउनकी आँख से आँसू बहते हैंसमाज बनाने वलों नेये कैसी रीत बनाई हैमाँ के जिगर के टुकडों कीदुनिया दूर बसाई हैदिल करता है तुझे बुलाऊँपर तेरी भी है मजबूरीपर तेरे बिन प्यारी बेटीतेरी माँ है बडी अधूरीजब भी घर के पिछवडे सेगाडी की सीटी सुनती हूँइक झूठी सी आशा मे बेटीतेरे पाँव की आहट सुनती हूँआओ जीते...