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शुक्रवार, 5 मार्च 2010

जाने हिन्दू से हूँ या मुसलमान का------[कविता]------शामिख फ़राज़

जाने हिन्दू से हूँ या मुसलमान का
क्या मज़हब मेरा मैं किस ईमान का
ज्यादा कुछ मालूम नहीं खुद के बारे में
बस भेस लिए हूँ इक इंसान का
उसके घरों का मज़हब यह समझाया मुझे
मस्जिद अल्लाह की है मंदिर भगवान का
माना तलवारें तो चलो बेज़मीर ठहरी
मगर क्या हुआ ज़मीर इंसान का
और मुझे देखो दोनों ही जगाएं सुबह में
शोर मंदिर की घंटियों का अज़ान का
लिखोगे तो हम लफ्ज़ ही बनेगा फ़राज़
लेके देखो 'ह' हिन्दू से और 'म' मुसलमान का.