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गुरुवार, 3 जनवरी 2013

मेरा परिचय

पता नही क्यू मै अलग खङा हूं दुनिया से !
अपने सपनो को ढूढता विमुख हुआ हूं दुनिया से !!
पता नही क्यूं मै इस दुनिया से अलग हूं !
मगर मै सोचता कि दुनिया मुझसे अलग है !!
पता नही क्यूं अब ताने सुन कष्ट नही होता !
पता नही क्यूं अब तानो का असर नही होता !!
पता नही क्यूं लोगो को है मुझसे है शिकायत !
पता नही क्यूं बिना बात के दे रहे है हिदायत !!
पता नही क्यूं लोगो की सोच है इतनी निर्मम !
पतानही क्यूं इस दुनिया की डगर है इतनी दुर्गम !!

बुधवार, 2 जनवरी 2013

हम कैसे जिये

हम इस दुनिय मे कैसे जिये, 
रात जैसे अंधेरे मे हम कैसे चले !
हम आगे तो है साफ लेकिन,
पिछे की बुराईयों को कैसे मले!
लोग तो अब न जाने, 
क्या-क्या कहने लगे !                                                                
आखो से अब आसु,
बहने लगे !
लोगो कि चंद बाते पुकारे मुझे,
पर ये कटु जहर हम सहने लगे !
लोग कहते गये और हम सहते गये,
और जिंदगी की ये जंग लङते गये !

शुक्रवार, 23 अप्रैल 2010

कागज़ की नाव...(बाल कविता )...कुमार विश्वबंधु

आओ बनायें कागज़ की नाव !
आओ चलायें कागज़ की नाव !

" लो खा लो खाना ''
कहते हैं नाना -
फिर तुम चलाना
कागज़ की नाव ।

आओ बनायें कागज़ की नाव !
आओ चलायें कागज़ की नाव !

'' आँगन में पानी ''
कहती है नानी -
जाना है हमको
सपनों के गाँव ।