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सोमवार, 7 दिसंबर 2009

अफ़सर ................कहानी ( डाo श्याम गुप्ता )

मैं रेस्ट हाउस के बरांडे में कुर्सी पर बैठा हुआ हूँ सामने आम के पेड़ के नीचे बच्चे पत्थर मार- मार कर आम तोड़ रहे हैं कुछ पेड़ पर चढ़े हुए हैं बाहर बर्षा की हल्की-हल्की बूँदें (फुहारें) गिर रहीं हें सामने पहाडी पर कुछ बादल रेंगते हुए जारहे हैं, कुछ साधनारत योगी की भांति जमे हुए हैं निरंतर बहती हुई पर्वतीय नदी की धारा 'चरैवेति -चरेवैति ' का सन्देश देती हुई प्रतीत होती है बच्चों के शोर में मैं मानो अतीत में खोजाता हूँ गाँव में व्यतीत छुट्टियां , गाँव के संगी साथी .... बर्षा के जल से भरे हुए गाँव के तालाव पर कीचड में घूमते हुए; मेढ़कों को पकड़ते...