हमारा प्रयास हिंदी विकास आइये हमारे साथ हिंदी साहित्य मंच पर ..

शुक्रवार, 12 फ़रवरी 2010

प्रेम से परहेज नहीं है ........कविता ........[आशुतोष ओझा]

प्रेम से परहेज नहीं हैलेकिनउसके ' नरभक्षी' होने सेडरता हूँ।देह का अपना प्रमेय हैउसमें अंक नहींसिर्फ, रेखायें ही दिखती हैंउनके उतार-चढ़ाव की कोणदृष्टिसे बनी ' गजगामिनी'सभी को भाती हैलेकिन,जांघों के बीच समां जाने कोपरिणति नहीं मानताप्रेम से परहेज नहीं हैलेकिन,उसके 'नरभक्षी' होने सेडरता हूँ।गंगा में डुबकी लगानामन वचन और कर्म से पावन हैलेकिनखापों और पंचायतों के सम्मान मेंअसमय उसमें समा जाने की' कायरता ' कोप्रेम के लिए परित्याग नहीं मानताप्रेम से परहेज...

प्रस्तर प्रतिमा ------[ डाo श्याम गुप्त ]

वे बहुत बड़े ज्ञानी हैं ,विद्वान् हैं,नामी हैं, मानी हैं;ऊँचे पद पर बैठे हैं ,स्वयं में बहुत ऊंचाई समेटे हैं |जनता उनके पास पहुँच भी नहीं पाती है,उनकी ओर देखने पर ,लोगों की टोपी गिर जाती है |वे जन जन के काम कहाँ आते हैं,वे आदमी कहाँ ,पत्थर की निर्जीव मूर्ति नज़र आते हैं...