
आज ये खामोशियाँ सिमटती क्यों नहींहाल-ऐ-दिल आपके लब सुनते क्यों नहीं..कभी तो फैला दो अपनी बाहों का फलकमेरी आँखों की दुआ तुम तक जाती क्यों नहीं..दर्द-ऐ-दिल बार-बार पलकों को भिगो जाता है ...आपका खामोश रहना मुझे भीतर तक तोड़ जाता है..मुहोब्बत मेरी जिंदगी की मुझसे रूठने लगी है ..अंधेरे मेरी जिंदगी की तरफ़ बढ़ने लगे है..बे-इंतिहा मुहोब्बत का असर आज होता क्यों नहीं..मेरी आत्मा में बसे हो तुम, ये तुम जानते क्यों नहीं..दिन-रात मेरी दुआओ में तुम हो ये तुम...