काव्याचार्यों द्वारा स्थापित काव्य के गुण -माधुर्य, ओज एवं प्रसाद गुण , काव्य व काव्य कृति के आवश्यक अंग हैं , अर्थात काव्य में शब्द, अर्थ व भाव सौन्दर्य होना चाहिए ताकि पाठकों को रसास्वादन एवं आह्लाद ( माधुर्य ) से बुद्धि प्रकाशित होकर मन व चिट्टा स्फूर्त व ज्ञान मय होजाय (ओज गुण ) और परिणामी भाव में चित्त प्रफुल्लित होकर उसकी वृत्तियों में नवीनता व विषय का विकासोन्मुखी भाव उत्पन्न हो ( प्रसाद गुण ).| काव्य के वर्ण्य विषय के अनुसार कविता में ये गुण मुख्य या गौण हो सकते हैं | मेरे विचार से जन सामान्य व पाठकों के जन मन रंजन के लिए काव्य का सर्वप्रथम...