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मंगलवार, 20 अप्रैल 2010

धरी लुट गयी (गीत) .............. कुमार विश्वबंधु

धरी धरी लुट गयी सपनों की टोकरी,मिली नहीं नौकरी। क्याहम कहें कुछ कहा नहीं जाए,जीवन से  मौत अच्छीसहा नहीं जाए। झूठेअरमान हुए सपनें बेइमान हुए, अपने अनजान हुएरहा नहीं जाए। करगई बाय बाय मुम्बई की छोकरी !मिली नहीं नौकरी।धरी धरी लुट गयी ... कितने जतन किएपूरी की पढ़ाई,फिर भी जमाने मेंबेकारी हाथ आई। दर दर की ठोकर खाते, पानी पी भूख मिटाते,पर हम लड़ते ही जातेजीवन की लड़ाई। होकरमजबूर यारों करते हैं जोकरी !मिली नहीं नौकरी।धरी धरी लुट गयी...

दीप बना कर याद तुम्हारी....(गीत)...मनोशी जी

दीप बना कर याद तुम्हारी, प्रिय, मैं लौ बन कर जलती हूँप्रेम-थाल में प्राण सजा कर लो तुमको अर्पण करती हूँ।अकस्मात ही जीवन मरुथल में पानी की धार बने तुम,पतझड़ की ऋतु में जैसे फिर जीवन का आधार बने तुम,दो दिन की इस अमृत वर्षा में भीगे क्षण हृदय बाँध कर,आँसू से सींचा जैसे अब बन कर इक सपना पलती हूँ। दीप बना कर...मेरे माथे पर जो तारा अधरों से तुमने आँका था,अंग-अंग हर स्पर्श तुम्हारा लाल दग्ध हो मुखर उठा था,उन चिह्नों को अंजुरि में भर पीछे डाल अतीत अंक में,दे दो ये अनुमति अब प्रियतम, अगले जीवन फिर मिलती हूँ।दीप बना कर...तुम रख लेना मेरी स्मृति को अपने...