जब मैंने पहली बार दिनकर जी की यह कविता पढ़ी तो दिनकर जी के अतलस्पर्शी विचार मेरे ह्रदय पर अपने सुनहरे छाप छोड़ गए !
दिनकर जी की इस कविता का गूढ़ रहस्य जानने के बाद किसी भी मनुष्य के सुप्त एवं निराश विचारो में नवीन प्राण आ सकते है ! चाँद और कविरात यों कहने लगा मुझसे गगन का चाँद,आदमी भी क्या अनोखा जीव है!उलझनें अपनी बनाकर आप ही फँसता,और फिर बेचैन हो जगता, न सोता है।
जानता है तू कि मैं कितना पुराना हूँ?मैं चुका हूँ देख मनु को जनमते-मरतेऔर लाखों बार तुझ-से पागलों को भीचाँदनी में बैठ स्वप्नों पर सही करते।
आदमी का स्वप्न? है वह बुलबुला जल काआज उठता...