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शनिवार, 7 अगस्त 2010

मिलते ही मैं गले नहीं लगता.....ग़ज़ल....manoshi ji

लोग मुझको कहें ख़राब तो क्याऔर मैं अच्छा हुआ जनाब तो क्याहै ही क्या मुश्तेख़ाक से बढ़ करआदमी का है ये रुआब तो क्याउम्र बीती उन आँखों को पढ़तेइक पहेली सी है किताब तो क्यामैं जो जुगनु हूँ गर तो क्या कम हूँकोई है गर जो आफ़ताब तो क्याज़िंदगी ही लुटा दी जिस के लियेमाँगता है वही हिसाब तो क्यामिलते ही मैं गले नहीं लगताफिर किसी को लगा खराब तो क्याआ गया जो सलीका-ए-इश्क अब’दोस्त’ मरकर मिला सवाब तो क...