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शुक्रवार, 30 जुलाई 2010

गोबिंद गोबिंद नाम उचारो...........(सवैया).................डा श्याम गुप्त

सीस वही जो झुकैं चरनन, नित राधा-गोबिन्द सरूप सदा जो |नैन वही जो लखें नित श्याम, वही शुचि सांवरो रूप लला को.|कान वही जो सुनै धुनी मुरली, बजाई धरे सिर मोर पखा जो |तन तौ वही जो निछावर होय,धरे हिये रूप वा ऊधो सखा को |हाथ वही जो जुड़ें हर्षित मन , देखिकें लीला जो गौ दोहन की |पैर वही जो कोस चौरासी , चलें परिकम्मा में गिरि गोधन की |ध्यान वही जो रमई नित प्रति, मनमोहिनी वा छवि में सोहन की |श्याम है मन तौ वही मन ही मन मुग्ध मुरलिया पै मनमोहन की |गलियाँ वही व्रज की गलियाँ ,जहँ धूलि में लोटे कृष्ण मुरारी |वन तौ वही वृन्दावन 'श्याम , बसें जहँ राधिका-रास...