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मंगलवार, 29 दिसंबर 2009

शान्ता क्लोज़

शान्ता क्लोज़ ने दरवाजा खटटायाछुट्टी के दिन भी सुबह-सुबहआठ बजे ही आ जगायाबोलाआँख फाडकर क्या देखता हैमुझे पहिचानजो भी चाहिऐ माँग .हम बडबडाऐ-सुबह-सुबह क्यों दिल्लगी करते होकिसी दूसरे दरवाजे पर जाओसरकारी छुट्टी है ,सोने दोतुम भी घर जाकर सो जाओ.वह हमारी समझदारी पर मुस्करायापुनः आग्रह भरी निगाहों कातीर चलाया। हामने भी सोच -चलो आजमाते हैंबाबा कितने पानी मेंपता लगाते हैं.हम बोले -बाबा, हमारा ट्रान्सफरकेंसिल कर दोमंत्री जी के कान मेंकोई ऐसा मंत्र भर दोजिससे उनको लगेहम उनके वफादार हैंसरकार के सच्चे पहरेदार हैं.वो मुस्कराया-यह तो राजनैतिक मामला हैहम राजनीती...