हम भी अंतर मन के स्वर को लिख पातेशब्दों की परिधी में भाव समा जाते ॥तेरी आंहें और दर्द लिखते अपनेलिखते हम फिर आज अनकहे कुछ सपनेमरुस्थली सी प्यास भी लिखते होटों कीलिखते फिर भी बहती गंगा नोटों कीआंतों की ऐंठन से तुम न घबरातेहम भी अंतर मन के स्वर को लिख पाते॥तेरे योवन को भी हम चंदन लिखतेअपनी रग रग का भी हम क्रंदन लिखतेलिख देते हम कुसुम गुलाबी गालों कोफिर भी लिखते अपने मन के छालों को निचुड़े चेहरों पर खंजर आड़े आतेहम भी अंतर मन के स्वर को लिख पाते ॥पीड़ा के ...