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रविवार, 23 मई 2010

हकीकत .....ग़ज़ल ......कवि दीपक शर्मा

मैं भी चाहता हूँ की हुस्न पे ग़ज़लें लिखूँमैं भी चाहता हूँ की इश्क के नगमें गाऊंअपने ख्वाबों में में उतारूँ एक हसीं पैकरसुखन को अपने मरमरी लफ्जों से सजाऊँ ।लेकिन भूख के मारे, ज़र्द बेबस चेहरों पेनिगाह टिकती है तो जोश काफूर हो जाता हैहर तरफ हकीकत में क्या तसव्वुर में फकत रोटी का है सवाल उभर कर आता है ।ख़्याल आता है जेहन में उन दरवाजों काशर्म से जिनमें छिपे हैं जवान बदन कितने जिनके तन को ढके हैं हाथ भर की कतरनजिनके सीने में दफन हैं , अरमान कितने जिनकी डोली नहीं उठी इस खातिर क्योंकिउनके माँ-बाप ने शराफत की कमाई हैचूल्हा एक बार ही जला...

--प्रेम काव्य--प्रेम परक अनुपम काव्य संग्रह

(---पुस्तक --प्रेम काव्य , रचनाकार- डा श्याम गुप्त, प्रकाशक-- प्रतिष्ठा साहित्यिक व सांस्कृतिक संस्था, आलम बाग़ , लखनऊ , समीक्षक --श्री विनोद चन्द्र पाण्डेय 'विनोद' IAS , पूर्व निदेशक, हिन्दी संस्थान ,लखनऊ, उ. प्र.)  उत्तर रेलवे चिकित्सालय लखनऊ में वरिष्ठ चिकित्सा अधीक्षक पद से सेवा-निवृत्त डा श्याम गुप्त हिन्दी के लब्ध-प्रतिष्ठित साहित्यकार हैं | विशेष रूप से काव्य-विधा में उनका महत्वपूर्ण योगदान रेखांकित करने योग्य है | उनकी अनेक काव्य कृतियों का प्रकाशन हो चुका है | इसी श्रृंखला में 'प्रेम काव्य' की प्रस्तुति स्वागत योग्य है...