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रविवार, 18 जुलाई 2010

बरसात.............(कविता)......................सुमन 'मीत'

घना फैला कोहराकज़रारी सी रातभीगे हुए बादल लेकरफिर आई है ‘बरसात’ अनछुई सी कली है मह्कीबारिश की बूंद उसपे है चहकीभंवरा है करता उसपे गुंजनये जहाँ जैसे बन गया है मधुवन रस की फुहार से तृप्त हुआ मनउमंग से जैसे भर गया हो जीवन’बरसात’ है ये इस कदर सुहानीजिंदगी जिससे हो गई है रूमानी...