
अगर दे दूँ मै तुम्हे खड्ग और भाल,
क्या जीत जाओगे तुम माँ भारती के लाल।
सिस कटा कर भी तुम,
क्या बचा पाओगे अपने शान को,
बेईमानी के अंधकार में,
क्या देख पाओगे अपने मान को।
अपने अमिट उत्कर्ष को क्या वापस ला पाओगे तुम,
जहाँ भ्रष्टाचार है वहाँ शांति करवा पाओगे तुम।
रग रग में बहते रक्त की,
क्या नाश बचा पाओगे तुम।
अगर दे दूँ मै तुम्हे खड्ग और भाल,
क्या जीत जाओगे तुम माँ भारती के लाल।
आशा नहीं विश्वास है,
फिर भी मन में क्यों थोड़ा काश है।
कि अगर विजय...