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बुधवार, 28 अप्रैल 2010

झूठ

झूठ हमारा नहीं हमारे पूर्वजो का संस्कार है जनता, नेता, अभिनेता सबको यह स्वीकार है ! झूठ बोले बिना आजकल गाडी नहीं चलती है झूठ बोलने से कभी-कभी सफलता भी मिलती है ! जो जितना ज्यादा झूठ बोलता है वो उतना ज्यादा पाता है इतिहास उठा कर देख लो सच बोलने वाला पत्थर ही खaता है ! अजीब विडंबना है ये, की आजकल सच्चे का मुह काला है सबको पता की झूठे का बोल बाला है ! झूठ तो कुछ है ही नहीं, जहां तक मुझको ज्ञान है ये मै नहीं कहता कहते वेद पुराण है ! "सर्व खल्विदं ब्रह्म" छान्दोग्योप्निशत का यह मन्त्र है एक सच और झूठ की लड़ाई अब मुझसे नहीं...

मनुष्य प्रकृति और समय

हर क्षण हर पल इस स्रष्टि में कुछ न कुछ होता रहता है ! "समय" इक पल भी नहीं ठहरता ! समय का चक्र निरंतर घूमता रहता है ! जब मै इस लेख को लिख रहा हूँ, मुझे मै और मेरे विचार ही दिख रहे है ! ऐसा प्रतीत होता है, जैसे की कुछ हो ही नहीं रहा ! हवा शांत है ! सरसों के पीले खेत इस भांति सीधे खड़े है, जैसे किसी ने उन्हें ऐसा करने का आदेश दिया हो ! चिड़ियों की चहचहाहट, प्रात: कालीन समय और ओस की बूंदे, बहुत भली लग रहीं हैं ! सूर्य खुद को बादलों के बीच इस भांति छुपा रहा है, जैसे कोई लज्जावान स्त्री पर पुरुष को देख कर अपना मुंह आँचल में छुपा लेती है ! कोहरे को देख...