नज़र बे-जुबाँ और जुबाँ बे-नज़र हैइशारे समझने का अपना हुनर हैसितारों के आगे अलग भी है दुनियानज़र तो उठाओ उसी की कसर हैमुहब्बत की राहों में गिरते, सम्भलतेये जाना कि प्रेमी पे कैसा कहर हैजो मंज़िल पे पहुँचे दिखी और मंज़िल।ये जीवन तो लगता सिफर का सफ़र है।।रहम की वो बातें सुनाते हमेशादिखे आचरण में ज़हर ही ज़हर हैकई रंग फूलों के संग थे चमन मेंये कैसे बना हादसों का शहर हैहै शब्दों की माला पिरोने की कोशिशसुमन ये क्या जाने कि कैसा असर...