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शनिवार, 9 अक्टूबर 2010

द्रोपदी पत्र....डा श्याम गुप्त

( अगीत में ) हे धर्मराज! मैं बन्धन थी ,समाज व संस्कार के लिए ,दिनभर खटती थी ,गृह कार्य में,पति परिवार पुरुष की सेवा मेंआज , मैं मुक्त हूँ,बड़ी कंपनी की सेवा में नियुक्त हूँ,स्वेच्छा से दिनरात खटती हूँ;अन्य पुरुषों के मातहत रहकरकंपनी की सेवा ...