धरातल पर आकर खड़ी हो गईं फिरउड़ती आकांक्षाएँ लोगों की,दरक गये सपनेजो सजे थे लोगों के,बिखर गईं कड़ियाँजो बुनी थी लोगों की।हर सांस को अगली सांस का पता नहीं,इस पल में क्या गुजर जाये पता नहीं,बस....समय की गति से न पिछड़ने के लिए,आज की भागदौड़ में साथ चलने के लिए,लगे हैं....किसी मशीन की तरह।उगते सूरज की मानिन्द उठ कर,सारे दिन का सफरखत्म होता है जोरात की काली चादर तले।इसी को अपने दर्द की इंतिहा जाना,इसके बाद किसी सीमा को न पहचाना,भागदौड़ का दर्द,पिछड़ने का भय,कुछ पाने की लालसा,कुछ खोने का ग़म,समझा गया, माना गया इसी कोसबसे बड़ा ग़म,आने वाले पल को कठिन...