
प्रतीक्षा के पल तुम्हारे प्रिय,इतने प्यारे होंगे क्या पता था।मधुरस साथ तुम्हारा है प्रिय,हर क्षण, प्रतिपल ह्रदय में घुल कर,संगीतबद्ध हुआ आत्मा का कण कण,तेरी सुरीली प्रणय राग सुनकर।
गुँजित हुआ झंकरित सा ह्रदय स्वर,गंगा सी पावन नदी सा बहा था।
प्रतीक्षा के पल तुम्हारे प्रिय,इतने प्यारे होंगे क्या पता था।
संसर्ग मिलन का होता अनोखा,प्रतीक्षा के पल बन जाते है सुहाने,चाँदनी रात में हमदोनों जो छत पे,ढ़ुँढ़ लेते है फिर मिलने के बहाने।
थम क्यों ना...