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गुरुवार, 8 सितंबर 2011

लोग {गजल} सन्तोष कुमार "प्यासा"

आखिर किस सभ्यता का बीज बो रहे हैं लोगअपनी ही गलतियों पर आज रो रहे हैं लोग हर तरफ फैली है झूठ और फरेब की आगफिर भी अंजान बने सो रहे है लोग  दौलत की आरजू में यूं मशगूल हैं सबझूठी शान के लिए खुद को खो रहे हैं लोग  जाति, धर्म और मजहब के नाम परलहू का दाग लहू से धो रहे हैं लोग  ऋषि मुनियों के इस पाक जमीं परक्या थे और क्या हो रहे है लोग...&nbs...