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शनिवार, 28 मई 2011

सुहानी साँझ {गीत} सन्तोष कुमार "प्यासा"

प्रखर होने लगी हिय उत्कंठा आलोकित हुई सुप्त उमंग तट पर लहरें खेले जैसे मन में उठे वही तरंग रोम-रोम हुआ स्पंदित महक उठी तरुनाई फिर सुहानी साँझ आई उठी मचल स्म्रतियां फिर से बज उठे ह्रदय के तार-तार ये प्रीत धुन छेड़ी किसने सजीव हो उठे आसार विस्तृत होने लगी सुवासित सुरभि मन में ये किसकी, धुंधली छवि सी छाई फिर सुहानी साँझ आई बस एक आस लिए मै, काटूं पल-पल प्रतीक्षा का यह अनंत काल घोर विस्मृत भी कर सकता कैसे? तुम चाँद तो मै चकोर बह चली अश्रु सरित, होंठो में घुला विषाद धरा में मनोरम मौन-वीणा छाई फिर सुहानी साँझ आई... ...