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शनिवार, 19 फ़रवरी 2011

तुम तुम और तुम... (गीत)--- ( डा श्याम गुप्त )

सकल रूप रस भाव अवस्थित , तुम ही तुम हो सकल विश्व में |सकल विश्व तुम में स्थित प्रिय,अखिल विश्व में तुम ही तुम हो |तुम तुम तुम तुम , तुम ही तुम हो,तुम ही तुम, प्रिय! तुम ही तुम हो || तेरी वींणा के ही नाद से, जीवन नाद उदित होता है |तेरी स्वर लहरी से ही प्रिय,जीवन नाद मुदित होता है |ज्ञान चेतना मान तुम्ही हो ,जग कारक विज्ञान तुम्ही हो |तुम जीवन की ज्ञान लहर हो,भाव कर्म शुचि लहर तुम्ही हो | अंतस मानस या अंतर्मन ,अंतर्हृदय तुम्हारी वाणी |अंतर्द्वंद्व -द्वंद्व हो तुम ही , जीव जगत सम्बन्ध तुम्ही हो | तेरा प्रीति निनाद न होता , जग का कुछ संबाद न होता...