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गुरुवार, 12 नवंबर 2009

यार पुराने छूट गए तो छूट गए -----------(जतिन्दर परवाज़ )

यार पुराने छूट गए तो छूट गएकांच के बर्तन टूट गए तो टूट गएसोच समझ कर होंट हिलाने पड़ते हैंतीर कमाँ से छूट गए तो छूट गएशहज़ादे के खेल खिलोने थोड़ी थेमेरे सपने टूट गए तो टूट गएइस बस्ती में कौन किसी का दुख रोयेभाग किसी के फूट गए तो फूट गएछोड़ो रोना धोना रिष्ते नातों परकच्चे धागे टूट गए तो टूट गएअब के बिछड़े तो मर जाएंगे ‘परवाज़’हाथ अगर अब छूट गए तो छूट...

”कंजूस कर्ण’-----------(डा० तारा सिंह )

संयोग से एक बार मुझे अपने दोस्त विभा के साथ उसके गांव जाने का मौका मिला । जब मैं उसके गाँव के करीब पहुँची, तो देखा, गाँव के ठीक बाहर एक विशालकाय मूर्ति के आगे मेला लगा हुआ है । लोग श्रद्धा सुमन अर्पित कर रहे हैं । मैणे पूछा,’ विभा ! यह मूर्ति, किसकी है , जिसे लोग माल्यार्पण कर रहे हैं ।’ विभा ने कहा,’ नाम पढ़ो, खुद जान जाओगी । मैंने जब नाम पढ़ा तो आश्चर्यचकित रह गई , अरे ! यह कैसा नाम ? ’ हमारे प्रिय , कंजूस सेठ छेदीलाल कर्ण’ पढ़कर मुझे कुछ अजीब सा लगा । यह क्या, कंजूस और कर्ण , नाम एक ही व्यक्ति का ; यह कैसे ? अब मूर्ति के बारे में जानने की मेरी...

संयोग से एक बार मुझे अपने दोस्त विभा के साथ उसके गांव जाने का मौका मिला । जब मैं उसके गाँव के करीब पहुँची, तो देखा,गाँव के ठीक बाहर एक विशालकाय मूर्ति के आगे मेला लगा हुआ है । लोग श्रद्धा सुमन अर्पित कर रहे हैं । मैणे पूछा,’ विभा ! यह मूर्ति, किसकी है , जिसे लोग माल्यार्पण कर रहे हैं ।’ विभा ने कहा,’ नाम पढ़ो, खुद जान जाओगी । मैंने जब नाम पढ़ा तो आश्चर्यचकित रह गई , अरे ! यह कैसा नाम ? ’ हमारे प्रिय , कंजूस सेठ छेदीलाल कर्ण’ पढ़कर मुझे कुछ अजीब सा लगा । यह क्या, कंजूस और कर्ण , नाम एक ही व्यक्ति का ; यह कैसे ? अब मूर्ति के बारे में जानने की मेरी...