हमारा प्रयास हिंदी विकास आइये हमारे साथ हिंदी साहित्य मंच पर ..

व्यंग्य लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
व्यंग्य लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

गुरुवार, 10 जनवरी 2013

नारी (एक बेबसी)

जब नारी ने जन्म लिया था !
अभिशाप ने उसको घेरा था !!
अभी ना थी वो समझदार !
लोगो ने समझा मनुषहार !!
उसकी मा थी लाचार !
लेकीन सब थे कटु वाचाल !!
वह कली सी बढ्ने लगी !
सबको बोझ सी लगने लगी !!
वह सबको समझ रही भगवान !
लेकीन सब थे हैवान !!
वह बढना चाहती थी उन्नती के शिखर पर !
लेकीन सबने उसे गिराया जमी पर !!
सबने कीया उसका ब्याह !
वह हो गयी काली स्याह !!
ससुर ने मागा दहेग हजार !
न दे सके बेचकर घर-बार !!
सास ने कीया अत्याचार !
वह मर गयी बिना खाये मार !!
पती ने ना दीया उसे प्यार !
पर शिकायत बार-बार !!
किसी ने ना दिखायी समझदारी !
यही है औरत कि बेबसी लाचारी !!
ना मीली मन्जिल उसे बन गयी मुर्दा कन्काल !
सबने दिया अपमान उसे यही बन गया काल !!
यही है नारी कि बेबसी यही है नारी की मन्जिल !
यही हिअ दुनीय कि रीत यही है मनुष्य का दिल !!
मै दुआ करता हू खुदा से किसी को बेटी मत देना !
यदी बेटी देना तो इन्सान को हैवनीयत मत देना !!

गुरुवार, 27 दिसंबर 2012

भ्रष्टाचार

यहा हर तरफ है बिछा हुआ भ्रष्टाचार !
हर तरफ फैला है काला बाजार !!
राजा करते है स्पेक्ट्रम घोटाला !
जनता कहती है उफ मार डाला !!
लालू का चारा कलमाणी का राष्ट्रमण्डल !
जनता बेचारी घुट रही है पल-पल !!
यहा होते है घोटाले करोणो मे !
यहा फलता है भ्र्ष्टाचार नेताओं के पेङो मे !!
मेरी दुनिया का इतिहास है ये,चोरी,दंगा,फसाद है ये !
बलात्कार,जुर्म और शोषण,मनुष्यो का इतिहास है ये !!
हत्या,फिरौती और लूट दुनिया का इश्तहार है ये !
नेता,डीलर और किलर रीश्तो मे रीश्तेदार है ये !!
और हमारे नेता कांट्रेक्ट किलर के बाप है ये !
मंच और भाषण मे फिल्मो के अमिताभ है ये !!
लाखो नही करोणो नही अरबो का व्यापार है ये !
शान्ति और शौहार्द नही नताओ का जंगलराज है ये!!
स्वीस बैंक मे पङा रुप्पया नेताओ की शान है ये !
भ्रष्ट्राचार से घिरा भ्रष्ट समाज है ये !!
नेता नोटो की माला पहने मरे ये जनता बेचारी !
नेता करता बङा घोटाला मरे चाहे दुनिया सारी !!
चुनाव के पहले प्यार दिखाये !
चुनाव के बाद तलवार दिखाये !!
ये है घर के भेदी लूटे हिन्दुस्तान को !
जाती,धर्म के नाम पर बाते इन्सान को !!
चुनाव के पहले करते रहते भैया भैया !
चुनाव के बाद इन्के लिये सबसे बङा रुप्पया !!
भ्रष्ट्राचार हो गयी है इस देश की बिमारी !
जिसमे पिस रही निर्दोष जनता बेचारी !!

शनिवार, 25 जून 2011

व्यंग्यः कांग्रेसी दांत - शम्भु चौधरी

जिस शख्स ने भी इस कहावत को ‘‘हाथी के दांत दिखने के और खाने के और’’लिखा, शायद उसे पता भी नहीं होगा कि भारत में एक राजनैतिक दल जिसका नाम कांग्रेस पार्टी है उसके लिए भी इस कहावत को लागू कर दिया जायेगा। जब से कांग्रेस जोंकपाल बनाम लोकपाल बिल बनाने के कसरत में लगी है कांग्रेस पार्टी नये-नये शब्दों का गठन कर कभी अन्ना हजारे तो कभी बाबा रामदेव पर हमला कर रही है तो कभी खुद का बचाव करने में। अब कांग्रेसियों ने दावा किया है कि पिछले 6 माह में इन लोगों ने 68 हजार करोड़ काले धन को सफेद बना दिया है। कांग्रेसीगण इस बात का जबाब हमें शायद नहीं देगी कारण की ‘‘हमरी कलमवा किसी भी चुनावी मैदान से चुन कर पैदा नहीं हुई। साली भ्रष्टाचार के काले कमाई से पैदा होलवाणी। अब ईंमे हमनीके का दोष बाड़े? सारे देसवां मेंईं ईईई... धनवा सूरा आआअ...साळा चलते-चलते काला हो गईंलबां। ऐई..में कांग्रेसियां लोगणका का दोष देवे का कोणु बात नैईखे बां।’’

अब लो भाई बंगाल में रह कर हमारी कलम भी माकपा की तरह गरीबों की मसीहा बन गई। दिते हुबे

...दिते हुबे- पुरिये देबो...पुरिये दिबो... करते-करते किसानों की जमीन ही डकारने लगी। एई तो ममता दीदी छीलो ना होले कांग्रेसीरा तो चुप कोरे बोसेही छिलो। टाटा हो या जैकोनूक न हो अमार बाबा होअ..क जैखने साले दूटा फसल होसछिळो सेई जमीनटा के बाममांर्चा सरकार जोर जर्बदस्ती कोरे निये, टाटा के दिये दिळो। दिल्ली'तिके कांग्रेसी'रा बोललो... कार..खा....ना तो लगाते होबे ना होले काज खोथाई पावे? कोनो स्पे..से (चांद) तो नैनोकार बनाते पारेबे ना। ऐखून कांग्रेसीरा, बामदले लोगरा ताकते ही थाकलो। टाटा गुजराते नरेन्द्र मोदी गोदीते गिए बोसेगिलो आई....रे बाबा ईं कि होळो? खासकोरे बामदलेर लोग भांपते ही पारळो ना की टाटा चुप कोरे गुजराते पालिये जाबे। अब ममता दीदी की सरकार में आते ही सारी अनियमितताओं को दुरस्त करने में लगी है तो कुछ लोग कोर्ट के चक्कर लगाने लगे तो कुछ लोकपाल बिल को भुनाने के लिए सड़कों पर दावा ठोकने में लग गये कि देश में हम कांग्रेसी लोग ही भ्रष्टाचार को मिटाने में दिल से लगे हैं और बाकी के सब या तो नाटक कर रहें हैं या अड़ंगा लगा कर विवाद खड़ा कर रहें हैं। भला विवाद हो भी क्यों नहीं? देश में शायद यह पहला कानून बनेगा जिसमें सरकार की तरफ से नाकाम कोशिशों के वाबजूद के बाद कि बिल के सभी प्रवधानों को इतना जटील बना दिया जाय कि जिसमें भ्रष्टाचारी को कम सजा और भ्रष्टाचारी को पकड़ाने में मदद करने वालों का अधिक सजा मिलेगी। न सिर्फ सजा की मियाद अधिक होगी, अपराधी को निर्दोष साबित होने के लिए उसकी दो बार सुनवाई सुननी होगी। सुनावाई में वरी हो जाने पर सरकारी खर्च पर उस व्यक्ति के खिलाफ मुकदमा लड़ा जायेगा जो भ्रष्टाचारी के खिलाफ मुकदमा दायर किया था और उसे कड़ी से कड़ी सजा दिलाई जायेगी। सरकार से जरा कोई चुने हुए सांसदों में कोई एक माई का लाल संसद में पूछे कि भाई! इतनी दया किस बात की इन भ्रष्टाचारियों को बचाने के लिए? देश की आम जनता पर तो आप इतनी दया नहीं दिखाते?दस-बीस मुकदमें में भ्रष्टाचारी यदि तथ्य के अभाव में बरी हो भी जाएं तो इसका अर्थ यह नहीं कि उसका अपराध कम हो गया। दरअसल कांग्रेस आम जनता को पहले से ही डरा देना चाहती है कि सोच लो बेटा मुकद्दमा किये तो हम तो बरी हो ही जायेगें पर तेरी खैर नहीं।

जब से बाबा रामदेव जी अचानक सूं दिल्ली म अनशन करणे

री सोची मेरी तो नींद ही गुमगी। म सोचन लाग्यो कि किकीदाळ में काळो है। दिल्ली म बाबा की अगवाई से तो सारी बात दर्पण सूं भी साफ-सुथरी झळकण लाग्गी। भाया! व्यापारी से बड़ों भ्रष्टाचारी थाने कुण मिलसी। एक तो व्यापारी ऊपर से संत, वा कहावत थे सुणी थी कि नइ थाणे फेर सूं ठाह करा दूँ - ‘‘एक तो करेला ऊपर से नींम चढ़ा’’ खैर बाबा रामदेव बेचारा को तो कांग्रेसीरां जो कियो सो किया निर्दोष जनता णभी ळाठियां मुफ्त म खानी पड़गी। चाळो आपां तो यूँ ही थारो दिमाग चाट लियों अब मेरे मनकी तो म निकाळळी। थे थारो सर भीत सूँ फोड़ता फिरो।

सोमवार, 3 मई 2010

पहचानो ... ........[व्य़ंग्य]----------मोनिका गुप्ता

मैं हू कौन .. जी हाँ, क्या आप जानते हैं कि मै हूँ कौन ...चलिए मैं हिंट देता हूँ .. सबसे पहले मै यह बता दू कि मैं आम आदमी नही हूँ . मुझसे मिलने के लिए लोगो की भीड लगी रहती है पर मै जिला उपायुक्त नही हूँ. मेरे आगे पीछे 4-4 अंगरक्षक घूमते हैं पर मैं पुलिस कप्तान भी नही हूँ .मेरे पीछे दिन रात जनता पडी रहती है पर मैं कोई स्वामी जी या कही का महाराज भी नही हूँ.

मेरे बच्चे स्कूल मे प्रथम आते हैं और सभी स्कूल के प्रोग्रामो मे हिस्सा लेते हैं सारा स्टाफ मेरा सम्मान करता है पर मै स्कूल का प्रिंसीपल भी नही हूँ.

जिले मे कोई भी कार्यक्रम होता है तो मुझे जरुर बुलाया जाता है . मेरे साथ फोटो खिचवाई जाती है. रिबन कट्वाया जाता है ताली बजा कर स्वागत किया जाता है मेरी बातो को समाचार पत्र मे मुख्य स्थान दिया जाता है पर मै किसी समाचार पत्र का सम्पादक भी नही हू.

मेरे पास सभी खास अफसरो के फोन आते रहते है या मै जब भी फोन करता हू तो वो तुरंत पहचान जाते हैं और मुझे और मेरे परिवार को भोजन पर बुलाते हैं.

मुझे देख कर कौन कितना जला भुना या कितना खुश हुआ मैं सब जानता हूँ. आप सोच रहे होगें कि मैं यकीनन ही कोई पागल हू जो ऐसे ही बात किए जा रहा है तो जनाब, मै बताता हू कि मै कौन हूँ
. मै हूँ चमचा”. एक दम चालू चक्रम चमचा .लोगो की चापलूसी करने मे सबसे आगे .थूक कर चाट्ने मे सबसे आगे . शहर मे कौन बडा अफसर है कौन नेता है उनकी पत्नी, बच्चे और तो और उनके कुतॆ का नाम उसकी पसंद ना पसंद सभी मुझे पता है . सभी को खुश रखना मेरा परम धर्म है तभी तो लोग मुझे फोन करके मुझसे मिलने को बैचेन रहते हैं क्योकि वो जानते है कि मै ही उनके काम करवा सकता हूँ.

मै भी महान हूँ पता है जब मेरा मन होता है तब फोन उठाता हूँ

जब मन नही होता तब फोन उठाता ही नही चाहे कितनी घंटी बजती रहे. मै जानता हूँ कि जिसने मेरे पास चक्कर लगाने है वो तो लगाएगा ही चाहे घंटो ही इंतजार ही क्यो ना करना पडे

ना सिर्फ बडे लोगो से बलिक मीडिया से भी मै बना कर रखता हूँ. समय समय पर मैं प्रैस कांफ्रैस करता रहता हूँ ताकि वो सैट रहे. लोगो के काम के लिए लंबी कतार मेरे घर या दफतर मे कभी भी देखी जा सकती है . पता है मै गिरगिट की तरह रंग बदलने मे माहिर हूँ. कल जो मेरा जानी दुश्मन था आज वो मेरे साथ बैठ कर चाय पी रहा होता है.या आज मै जिसके संग चाय पी रहा हू वो कल मेरा जानी दुश्मन बन सकता है काम निकलवाने के लिए मैं कुछ भी कर सकता हूँ किसी भी हद तक जा सकता हूँ. बस अधिकारी लोग खुश रहने चाहिए.

ये चमचागिरि मुझे अपने बडो से विरासत मे नही मिली बलिक समय और हालात को देखते हुए मुझे सीखनी पडी .मै जानता हूँ कि भले ही लोग मुझे पीठ पीछे गाली देते होगें मुझे अकडू की उपाधि भी दे दी होगी पर मुझे कोई असर नही. मै आज जो भी हूँ बहुत खुश हूँ.

तो दोस्तो, अगर आप भी खुश रहना चाहते हैं तो एक बार चमचागिरी के मैदान मे आ जाओ यकीन मानो एक बार समय तो लगेगा, अजीब भी लगेगा पर कुछ समय बाद आपको खुद ही अच्छा लगने लगेगा.

सच पूछो तो आज का समय शराफत, महेनत और ईमानदारी का नही है क्योकि उनकी कोई कद्र ही नही है या ये कहे कि सबसे ज्यादा पिसता ही शरीफ आदमी है इसलिए तो मुझे भी चमचागिरी को अपनाना पडा. तो अगर आप सुखी रहना चाहते है अपने सारे काम भी निकलवाना चाहते हैं तो बनावट और दिखावे की दुनिया मे आपका स्वागत है बिना देरी किए तुरंत आए और अधिक जानकारी के लिए शहर के किसी भी बडे अफसर से आप मेरा पता पूछ सकते हैं...

गुरुवार, 22 अप्रैल 2010

सुख बिजली जाने का...(व्यंग्य)...मोनिका गुप्ता

अरे भाई, हैरान होने की कोई बात नही है लगातार लगते कटो से तो मैने यही नतीजा निकाला है कि बिजली जाने के तो सुख ही सुख है.सबसे पहले तो समाज की तरक्की मे हमारा योगदान है. भई, अर्थ आवर मे 100% हमारा योगदान है क्योकि बिजली रहती ही नही है.तो हुआ ना हमारा नाम कि फलां लोगो का सबसे ज्यादा योगदान है बिजली बचाओ मे.

चलो अब सुनो, बिजली नही तो बिल का खर्चा भी ना के बराबर. शापिंग के रुपये आराम से निकल सकते हैं. बूढे लोगो के लिए तो फायदा ही फायदा है भई हाथ की कसरत हो जाती है. हाथ का पखां करने से जोडो के दर्द मे जो आराम मिलता है. घरो मे चोरी कम होती है भई, बिजली ना होने की वजह से नींद ही नही आती या खुदा ना करे कि सच मे, चोर आ भी गया और अचानक लाईट आ गई तो आप तो हीरो बन जाऐगे चोर को जो पकड्वा देगे, है ना समाचार पत्रो मे आपकी फोटो आएग़ी वो अलग. 

अच्छा, घर मे बिजली ना रहने से लडाई ना के बराबर होती है. भई कूलर या पंखे मे तो अकसर आवाज दब जाती है पर लाईट ना होने पर खुल कर आवाज बाहर तक जाती है. धीमी आवाज मे तो लड्ने मे मजा आता नही इसलिए लडाई कैंसिल करनी पड्ती है. और पता है सास बहू के झगडे कम हो जाते हैं दोनो बजाय एक दूसरे को कोसने के बिजली विभाग को कोसती हैं इससे मन की भडास भी निकल जाती है और मन को शांति भी मिलती है.पता है बिजली जाने से दोस्ती भी हो जाती है. अब लाईट ना होने पर आप घर से बाहर निकलेगे आपके हाथ मे रुमाल भी होगा पसीना पोछ्ने के लिए. सामने से कोई सुन्दर कन्या आ रही होगी तो आप जान बूझ कर अपना रुमाल गिरा कर कहेगे लगता है मैडम, आपका रुमाल गिर गया है यह सुन कर वो आपकी तरफ देखेगी,मुस्कुराएगी और दोस्ती हो जाएगी.

एक और जबरदस्त फायदा है कि आप विरह के गीत, कविताए लिखने लगेगें क्योकि आप बिजली को हर वक्त याद करेगें जब वो नही आएगी तो आपके मन मे ढेरो विचार उठने लगेगें. यकीन मानो आप उस समय विरह की ऐसी ऐसी कविता या लेख लिख सकते हैं कि अच्छे अच्छो की छुट्टी हो जाएगी.एक और सुख तो मै बताना ही भूल गई कि आप जोशीले भी बन सकते है बिजली घर मे ताला लगाना, तोड फोड करना, जलूस की अगवाई तभी तो करेगे जब आपमे गुस्सा भरा होगा और वो गुस्सा सिवाय बिजली विभाग के आपको कोई दिला सकता है सवाल ही पैदा नही होता .बाते और भी है बताने की पर हमारे यहाँ 5घंटे से लाईट गई हुई है और अब इंवरटर मे लाल लाईट जलने लगी है. बिजली विभाग मे मोबाईल कर रही हूँ पर कोई फोन ही नही उठा रहा. गुस्से मे मेरा रक्तचाप बढ रहा है डाक्टर को फोन किया तो वो बोले तुरंत आ जाओ. अब आँटो का खर्चा, डाक्टर की फीस ,दवाईयो का खर्चा सबके फायदे ही फायदे हैं और कितने सुख गिनवाऊँ बिजली जाने के.

शुक्रवार, 29 जनवरी 2010

स्वर्ग-नर्क के बँटवारे की समस्या - व्यंग्य

स्वर्ग-नर्क के बँटवारे की समस्या
--------------------------------------------


महाराज कुछ चिन्ता की मुद्रा में बैठे थे। सिर हाथ के हवाले था और हाथ कोहनी के सहारे पैर पर टिका था। दूसरे हाथ से सिर को रह-रह कर सहलाने का उपक्रम भी किया जा रहा था। तभी महाराज के एकान्त और चिन्तनीय अवस्था में ऋषि कुमार ने अपनी पसंदीदा ‘नारायण, नारायण’ की रिंगटोन को गाते हुए प्रवेश किया।

ऋषि कुमार के आगमन पर महाराज ने ज्यादा गौर नहीं फरमाया। अपने चेहरे का कोण थोड़ा सा घुमा कर ऋषि कुमार के चेहरे पर मोड़ा और पूर्ववत अपनी पुरानी मुद्रा में लौट आये। ऋषि कुमार कुछ समझ ही नहीं सके कि ये हुआ क्या? अपने माथे पर उभर आई सिलवटों को महाराज के माथे की सिलवटों से से मिलाने का प्रयास करते हुए अपने मोबाइल पर बज रहे गीत को बन्द कर परेशानी के भावों को अपने स्वर में घोल कर पूछा-‘‘क्या हुआ महाराज? किसी चिन्ता में हैं अथवा चिन्तन कर रहे हैं?

महाराज ने अपने सिर को हाथ की पकड़ से मुक्त किया और फिर दोनों हाथों की उँगलियाँ बालों में फिरा कर बालों को बिना कंघे के सवारने का उपक्रम किया। खड़े होकर महाराज ने फिल्मी अंदाज में कमरे का चक्कर लगा कर स्वयं को खिड़की के सामने खड़ा कर दिया। ऋषि कुमार द्वारा परेशानी को पूछने के अंदाज ने महाराज को दार्शनिक बना दिया-‘‘अब काहे का चिन्तन ऋषि कुमार? चिन्तन तो इस व्यवस्था ने समाप्त ही कर दिया है। अब तो चिन्ता ही चिन्ता रह गई है।’’

ऋषि कुमार महाराज के दर्शन को सुनकर भाव-विभोर से हो गये। आँखें नम हो गईं और आवाज भी लरजने लगी। वे समझ नहीं सके कि ऐसा क्या हो गया कि महाराज चिन्तन को छोड़ कर चिन्ता वाली बात कर रहे हैं? अपनी परेशानी को सवाल का चोला ओढ़ा कर महाराज की ओर उछाल दिया। महाराज ने तुरन्त ही उसका निदान करते हुए कहा-‘‘कुछ नहीं ऋषि कुमार, हम तो लोगों के तौर-तरीकों, नई-नई तकनीकों के कारण परेशान हैं। समझो तो हैरानी और न समझो तो परेशानी। अब बताओ कि ऐसे में चिन्तन कैसे हो?

ऋषि कुमार समझ गये कि महाराज की चिन्ता बहुत व्यापक स्तर की नहीं है। ऋषि कुमार के ऊपर आकर बैठ चुका चिन्ता का भूत अब उतर चुका था। वे एकदम से रिलेक्स महसूस करने लगे और बेफिक्र अंदाज में महाराज के पास तक आकर थोड़ा गर्वीले अंदाज में बोले-‘‘अरे महाराज! हम जैसे टेक्नोलोजी मैन के होते आपको परेशान होना पड़े तो लानत है मुझ पर।’’ महाराज ने ऋषि कुमार के चेहरे को ताका फिर इधर-उधर ताकाझाँकी करके बापस खिड़की के बाहर देखने लगे। महाराज के बाहर देखने के अंदाज को देख ऋषि कुमार ने भी अपनी खोपड़ी खिड़की के बाहर निकाल दी।

अच्छी खासी ऊँचाई वाली इस इमारत की सबसे ऊपर की मंजिल की विशाल खिड़की से महाराज अपने दोनो साम्राज्य-स्वर्ग और नर्क-पर निगाह डाल लेते हैं। ऋषि कुमार को लगा कि समस्या कुछ इसी दृश्यावलोकन की है। अपनी जिज्ञासा को प्रकट किया तो महाराज ने नकारात्मक ढंग से अपनी खोपड़ी को हिला दिया।

‘‘कहीं स्वर्ग, नर्क के समस्त वासियों के क्रिया-कलापों के लिए लगाये गये क्लोज-सर्किट कैमरों में कोई समस्या तो नहीं आ गई?’’ ऋषि कुमार ने अपनी एक और चिन्ता को प्रकट किया। महाराज के न कहते ही ऋषि कुमार ने इत्मीनान की साँस ली। सब कुछ सही होना ऋषि कुमार की कालाबाजारी को सामने नहीं आने देता है। ‘‘फिर क्या बात है महाराज, बताइये तो? आपकी परेशानी मुझसे देखी नहीं जा रही।’’ ऋषि कुमार ने बड़े ही अपनत्व से महाराज की ओर चिन्ता को उछाल दिया।

महाराज ऋषि कुमार की ओर घूमे और बोले-‘‘बाहर देख रहे हो कितनी भीड़ आने लगी है अब मृत्युलोक से। मनुष्य ने तकनीक का विकास जितनी तेजी से किया उतनी तेजी से मृत्यु को भी प्राप्त किया। अब दो-चार, दो-चार की संख्या में यहाँ आना नहीं होता; सैकड़ों-सैकड़ों की तादाद एक बार में आ जाती है। कभी ट्रेन एक्सीडेंट, कभी हवाई जहाज दुर्घटना, कभी बाढ़, कभी भू-स्खलन, कभी कुछ तो कभी कुछ........उफ!!! कारगुजारियाँ करे इंसान और परेशान होते फिरें हम।’’

ऋषि कुमार हड़बड़ा गये कि महाराज के चिन्तन को हो क्या गया? इंसान की मृत्यु पर इतना मनन, गम्भीर चिन्तन? अपनी जिज्ञासा को महाराज के सामने प्रकट किया तो महाराज ने समस्या मृत्यु को नहीं बताया। महाराज के सामने समस्या थी स्वर्ग तथा नर्क के बँटवारे की। ऋषि कुमार ने अपनी पेटेंट करवाई धुन ‘नारायण, नारायण’ का उवाच किया और महाराज से कहा कि इसमें चिन्ता की क्या बात है, हमेशा ही अच्छे और बुरे कार्यों के आधार पर स्वर्ग-नर्क का निर्धारण होता रहा है; अब क्या समस्या आन पड़ी?

महाराज ने अपने पत्ते खोल कर स्पष्ट किया कि ‘महाराजाधिराज ने युगों के अनुसार कार्यों का लेखा-जोखा तैयार कर रखा है। चूँकि भ्रष्टाचार, आतंक, झूठ, मक्कारी, हिंसा, अत्याचार, डकैती, बलात्कार, अपराध, रिश्वतखोरी, अपहरण आदि-आदि कलियुग के प्रतिमान हैं, इस दृष्टि से जो भी इनका पालन करेगा, जो भी इन कार्यों को पूर्ण करेगा वही सच्चरित्र वाला, पुण्यात्मा वाला होगा शेष सभी पापी कहलायेंगे, बुरी आत्मा वाले कहलायेंगे............’

‘‘.......तो महाराज, फिर चिन्ता कैसी? जो पुण्यात्मा हो उसे स्वर्ग और जो पापात्मा हो उसे नर्क में भेज दंे, सिम्पल सी बात।’’ ऋषि कुमार ने महाराज के शब्दों के बीच अपने शब्दों को घुसेड़ा। अपनी बात को कटते देख महाराज ने भृकुटि तानी और इतने पर ही ऋषि कुमार की दयनीय होती दशा देख थोड़ा नम्र स्वर में बोले-‘‘कितनी बार कहा है कि बीच में मत टोका करो, पर नहीं। यदि स्वर्ग-नर्क का निर्धारण इतना आसान होता तो समस्या ही क्या थी।’’

ऋषि कुमार को अपनी गलती का एहसास हुआ और अबकी वे बिना बात काटे महाराज की बात सुनने को आतुर दिखे। महाराज ने उनसे बीच में न टोकने का वचन लेकर ही बात को आगे बढ़ाने के लिए मुँह खोला-‘‘समस्या यह है कि धरती से जो भी आता है वह भ्रष्टाचार, आतंक, बलात्कार, रिश्वतखोरी, मक्कारी, अत्याचार आदि गुणों में से किसी न किसी गुण से परिपूर्ण होता है। ऐसे में महाराजाधिराज के बनाये विधान के अनुसार उसे स्वर्ग में भेजा जाना चाहिए किन्तु स्वर्ग की व्यवस्था को सुचारू रूप से बनाये रखने के लिए ऐसे लोगों में अन्य दूसरे गुणों-दया, ममता, करुणा, अहिंसा, धर्म आदि-को खोज कर उन्हें नर्क में भेज दिया जाता है।’’ तभी महाराज ने देखा कि ऋषि कुमार अपने मोबाइल के की-पैड पर उँगलियाँ नचाने में मगन हैं। ‘‘क्या बात है ऋषि कुमार, हमारी बातें सुन कर बोर होने लगे?’’ ‘‘नहीं, नहीं महाराज, ऐसा नहीं है। हम तो मोबाइल स्विच आफ कर रहे थे ताकि आपकी बातों के बीच किसी तरह का व्यवधान न पड़े।’’ ऋषि कुमार अपनी हरकत के पकड़ जाने पर एकदम से हड़बड़ा गये।

महाराज ने ऋषि कुमार की ओर से पूरी संतुष्टि के बाद फिर से मुँह खोला-‘‘पहले स्थिति तो कुछ नियंत्रण में थी किन्तु जबसे धरती से राजनीतिक व्यक्तियों का आना शुरू हुआ है तबसे समस्या विकट रूप धारण करती जा रही है। इन नेताओं में तो किसी दूसरे गुण को खोजना भूसे में सुई खोजने से भी कठिन है। इस कारण स्वर्ग की व्यवस्था भी दिनोंदिन लचर होती जा रही है। सब मिलकर आये दिन किसी न किसी बात पर अनशन, धरना, हड़ताल आदि करने लगते हैं। किसी दिन ज्ञापन देने निकल पड़ते हैं। अब यही सब मिल कर हमारे अधीनस्थों को चुनाव के लिए, लाल बत्ती के लिए उकसा रहे हैं।’’ महाराज ने दो पल का विराम लिया और कोने में रखे फ्रिज में से ठंडी बोतल निकाल कर मुँह में लगा ली। गला पर्याप्त ढंग से ठंडा करने के बाद उन्होंने ऋषि कुमार की ओर देखा। ऋषि कुमार ने पानी के लिए मना कर आगे जानना चाहा।

महाराज धीरे-धीरे चलकर ऋषि कुमार के पास तक आये और उनके कंधे पर अपने हाथ रखकर समस्या का समाधान ढूँढने को कहा-‘‘कोई ऐसा उपाय बताओ ऋषि कुमार जिससे इन सबको स्वर्ग की बजाय नर्क में भेजा जा सके और यहाँ के लिए बनाया महाराजाधिराज का विधान भी भंग न हो।’’

ऋषि कुमार महाराज की समस्या को सुनकर चकरा गये। महाराज की आज्ञा लेकर पास पड़ी आराम कुर्सी पर पसर गये। दो-चार मिनट ऋषि कुमार संज्ञाशून्य से पड़े रहने के बाद उन्होंने आँखें खोलकर महाराज की ओर देखा। महाराज को चुप देख ऋषि कुमार आराम से उठे और बोले-‘‘महाराज धरती के नेताओं की समस्या तो बड़ी ही विकट है। उनसे तो वहाँ के मनुष्यों द्वारा बनाये विधान के द्वारा भी पार नहीं पाया जा सका है। बेहतर होगा कि मुझे कुछ दिनों के लिए कार्य से लम्बा अवकाश दिया जाये जिससे कि विकराल होती इस समस्या का स्थायी समाधान खोजा जा सके। तब तक एकमात्र हल यही है कि धरती पर नेताओं को हाथ भी न लगाया जाये। बहुत ही आवश्यक हो तो उनके स्थान पर आम आदमी को ही उठाया जाता रहा जाये।’’ इतना कहकर ऋषि कुमार महाराज की आज्ञा से बाहर निकले और अपनी मनपसंद रिंगटोन ‘नारायण, नारायण’ गाते हुए वहाँ से सिर पर पैर रखकर भागते दिखाई दिये।

सोमवार, 31 अगस्त 2009

मलाईदार-मलाई ( व्यंग्य )

जब से मनमोहनी सरकार ने दोबार से होश संभालन शुरु किया, तभी से समाचार पत्रों में मलाईदार विभाग बडी ही चर्चा का विषय रहा है।जनता तो मनमोहन सिंह की मोह-मा्या में फंस गई लेकिन सरकारी बैसाखियां हैं कि मलईदार मंत्रालयों के दरिया में डुबकी लगाने की तैयारी में जुट गई थी।नतीजा सामने है कि मनमोहन की मोहनी सूरत पर मुस्कान आने से पहले ही गायब हो गई और मंत्रियों की घोषणा वे खुले मन से नहीं कर पाऐ।


पिछली बार जब सरकार बनाई थी तो कभी लेफ्ट गुर्राता था तो कभी राइट.....। बडी मुश्किल से संसदीय कुनबे की संभाल पूरे पाँच साल तक की जा सकी...?इसबार जनता ने कूछ दमदारी से उन्हें सरकार की कमान संभलाई तो लगा था कि कमसे कम इस बार तो सिंह साहब अपनी इच्छा से सांस ले सकेगें और लगाम केवल पार्टी सुप्रीमो के पास एक ही हाथ में रहेगी लेकिन इस बार भी बेचारे करुणा और ममता के साथ पंवार की पावर के चक्कर में फंस ही गये। सिंह सहब को एक बार फिर सरकार की इन बैसाखियों की रिपेयरिंग के लिऐ आला कमान की शरण में जाना ही पडा.......। वहाँ से बैसाखियों की रिपेयरिंग करवाकर जनता के सामने नई पुरानी चाशनी से युक्त मलाई -मक्खन वाले विभागों का तलमेल बिठाकर पेश किया गया ।
इस मलाई दार के शोर की गूँज हमारी श्रीमती के कानों में भी पहुंचनी लाजमी थी। तभी तो उन्होंने एक दिन हमसे पूछ ही लिया-ये मलाईदार क्या बला है....?

हमने अपनी कुशाग्र बुद्धी का प्रमाण देते हुऐ तुरन्त जबाब दिया- दूध..... अच्छा बढिया वाला दूध ....मलाईदार होता है...!हमार इतना कहना था कि हमें लगा जैसे बिना गैस का चूल्हा जलाऐ ही दूध में उफान आने वाला है.....? श्रीमती जी तुरन्त बोली-आप क्या मुझे उल्लु समझते हैं.....? सभी मंत्री पद के लिऐ मलाईदार विभाग ढुढ रहे हैं .... मैं पूछती हूँ कि मन्त्रालयों में मलाई भला आई कहाँ से.....? वहाँ क्या पंजाब से भैंस लाकर बांध रखी हैं मनमोहन जी ने.....?

अब भला हम श्रीमती जी को कैसे समझाऐं कि जिस विभाग में दान दक्षिणा और ऊपरी कमाई की जितनी अधिक गुंजाइश होती है वह विभाग सरकरी भाषा में आजकल मलाईदार विभाग कहलाता है ....।अब कहने के लिऐ तो सभी जन सेवक हैं। जनता की सेवा करने के लिऐ ही सभी राजनीति में आऐ हैं।तभी तो पाँच साल में ही बेचारे जनता का दुख-दर्द ढोते- ढोते करोडपति हो जाते हैं......।

अजीब गोरख-धंधा है ऊपर वाले का भी.......! जनता पसीना बहाते- बहाते रोटी के जोड-भाग में हाँफने लगती है लेकिन नेता जी उसी पसीने में इत्र डालकर नहाने से करोडपति हो जाते है.......? तभी तो मन्त्री बनते समय किसी को भी इस बात कोई चिन्ता नहीं होती कि गरीब का उद्धार कैसे होगा सभी की मात्र यही गणित होती है कि जनता का कुछ हो या न हो मेरे परिवार का उद्धार कैसे होगा..........?और वह अपने कुनबे की गरीबी दूर करने में सफल भी हो ही जाता है... बेचारी जनता का क्या है उसे तो वोट देनी है अगले चुनाव आऐगें तो फिर एक बार वोट दे देगी........!!


डॉ.योगेन्द्र मणि

सोमवार, 1 जून 2009

मलाईदार -मलाई (व्यंग्य)




जब से मनमोहनी सरकार ने दोबार से होश संभालन शुरु किया, तभी से समाचार पत्रों में मलाईदार विभाग बडी ही चर्चा का विषय रहा है।जनता तो मनमोहन सिंह की मोह-मा्या में फंस गई लेकिन सरकारी बैसाखियां हैं कि मलईदार मंत्रालयों के दरिया में डुबकी लगाने की तैयारी में जुट गई थी।नतीजा सामने है कि मनमोहन की मोहनी सूरत पर मुस्कान आने से पहले ही गायब हो गई और मंत्रियों की घोषणा वे खुले मन से नहीं कर पाऐ।


पिछली बार जब सरकार बनाई थी तो कभी लेफ्ट गुर्राता था तो कभी राइट.....। बडी मुश्किल से संसदीय कुनबे की संभाल पूरे पाँच साल तक की जा सकी...?इसबार जनता ने कूछ दमदारी से उन्हें सरकार की कमान संभलाई तो लगा था कि कमसे कम इस बार तो सिंह साहब अपनी इच्छा से सांस ले सकेगें और लगाम केवल पार्टी सुप्रीमो के पास एक ही हाथ में रहेगी लेकिन इस बार भी बेचारे करुणा और ममता के साथ पंवार की पावर के चक्कर में फंस ही गये। सिंह सहब को एक बार फिर सरकार की इन बैसाखियों की रिपेयरिंग के लिऐ आला कमान की शरण में जाना ही पडा.......। वहाँ से बैसाखियों की रिपेयरिंग करवाकर जनता के सामने नई पुरानी चाशनी से युक्त मलाई -मक्खन वाले विभागों का तलमेल बिठाकर पेश किया गया ।
इस मलाई दार के शोर की गूँज हमारी श्रीमती के कानों में भी पहुंचनी लाजमी थी। तभी तो उन्होंने एक दिन हमसे पूछ ही लिया-ये मलाईदार क्या बला है....?

हमने अपनी कुशाग्र बुद्धी का प्रमाण देते हुऐ तुरन्त जबाब दिया- दूध..... अच्छा बढिया वाला दूध ....मलाईदार होता है...!हमार इतना कहना था कि हमें लगा जैसे बिना गैस का चूल्हा जलाऐ ही दूध में उफान आने वाला है.....? श्रीमती जी तुरन्त बोली-आप क्या मुझे उल्लु समझते हैं.....? सभी मंत्री पद के लिऐ मलाईदार विभाग ढुढ रहे हैं .... मैं पूछती हूँ कि मन्त्रालयों में मलाई भला आई कहाँ से.....? वहाँ क्या पंजाब से भैंस लाकर बांध रखी हैं मनमोहन जी ने.....?

अब भला हम श्रीमती जी को कैसे समझाऐं कि जिस विभाग में दान दक्षिणा और ऊपरी कमाई की जितनी अधिक गुंजाइश होती है वह विभाग सरकरी भाषा में आजकल मलाईदार विभाग कहलाता है ....।अब कहने के लिऐ तो सभी जन सेवक हैं। जनता की सेवा करने के लिऐ ही सभी राजनीति में आऐ हैं।तभी तो पाँच साल में ही बेचारे जनता का दुख-दर्द ढोते- ढोते करोडपति हो जाते हैं......।

अजीब गोरख-धंधा है ऊपर वाले का भी.......! जनता पसीना बहाते- बहाते रोटी के जोड-भाग में हाँफने लगती है लेकिन नेता जी उसी पसीने में इत्र डालकर नहाने से करोडपति हो जाते है.......? तभी तो मन्त्री बनते समय किसी को भी इस बात कोई चिन्ता नहीं होती कि गरीब का उद्धार कैसे होगा सभी की मात्र यही गणित होती है कि जनता का कुछ हो या न हो मेरे परिवार का उद्धार कैसे होगा..........?और वह अपने कुनबे की गरीबी दूर करने में सफल भी हो ही जाता है... बेचारी जनता का क्या है उसे तो वोट देनी है अगले चुनाव आऐगें तो फिर एक बार वोट दे देगी........!!


डॉ.योगेन्द्र मणि



मंगलवार, 19 मई 2009

बन्दे-मातरम्,,,बन्दे-मातरम्....,!![भूतनाथ ]

"..........गीता पर हाथ रखकर कसम खा कि जो कहेगा,सच कहेगा,सच के सिवा कुछ नहीं कहेगा "
"हुजुर,माई बाप मैं गीता तो क्या आपके ,माँ-बाप की कसम खाकर कहता हूँ कि जो कहूँगा,सच कहूँगा,सच के सिवा कुछ भी नहीं कहूँगा...!!"
"तो बोल,देश में सब कुछ एकदम बढ़िया है...!!"
"हाँ हुजुर,देश में सब कुछ बढ़िया ही है !!"
"यहाँ की राजनीति विश्व की सबसे पवित्र राजनीति है !!"
"हाँ हुजुर,यहाँ की राजनीति तो क्या यहाँ के धर्म और सम्प्रदाय बिल्कुल पाक और पवित्र हैं,यहाँ तक की उनके जितना पवित्र तो उपरवाला भी नहीं....!!"
"हाँ....और बोल कि तुझे सुबह-दोपहर-शाम और इन दोनों वक्तों के बीच भर-पेट भोजन मिलता है !!"
"हाँ हुजुर,वैसे तो मेरे बाल-बच्चे और मैं और मेरी पत्नी हर शाम भूखे ही रहते हैं,लेकिन आप कहते हैं तो बताये देता हूँ कि हमें छहों वक्त भरपेट भोजन तो क्या मिलता है बल्कि ओवरफ्लो ही हो जाता है...मेरे जैसे लाखों इस देश के लोग भूखे होने की नौटंकी करते रहते हैं !!"
"जरुरत से ज्यादा मत बोल,जितना कहा जाए उतना ही बोल....!!"
"हुजुर थोड़े कहे को ज्यादा समझा....और ज्यादा बोल देता हूँ....आप ही की आसानी के लिए....हुजुर !!"
"ठीक है-ठीक है !!बोल इंडिया में चारों और शाईनिंग ही शाईनिंग है !!"
"हाँ हुजुर, शाईनिंग ही शाईनिंग तो क्या हमारा देश और उसके लाखों-लाख गाँव दिन-रात ऐसी रौशनी से जगमगा रहे हैं कि हर कोई इस जगमगाहट से अघा गया है.....!!"
"फिर जास्ती बोला तू.....!!"
"हुजुर,माई-बाप...!!गलती हो गई गई.....माफ़ कीजिये मालिके-आजम !!"
"हाँ,इसी तरह हम सबको इज्जत दे,सबकी इजात कर ....तभी सबसे इज्जत पायेगा....!!"
"हुजुर, इस देश में हम गरीबों को इतनी इज्जत-इतनी इज्जत मिल रही है कि उस इज्जत से हमारा हाजमा ख़राब हो रहा है,यहाँ तक कि हम सब कभी-कभी आप लोगों से बदतमीजी से पेश जाते हैं....!!"
"हाँ,अब तू समझदार होता जा रहा है....!!"
"हुजुर सब आपकी कृपा,आपकी इनायत है सरकार !!"
"हाँ,बस इसी तरह तू बोलता रह,हमारी चांदी होगी तो तेरी भी चांदी होगी है कि नहीं .....??"
"हाँ हुजुर,हमारी का तो पता नहीं.....आपकी जरुर होगी चांदी सरकार !!"
"अबे,जबान लड़ता है...??"
"हुजुर, फिर गलती हो गई....क्या करें जबान है ,लड़खड़ा ही जाती है,अब नहीं गलती होगी सरकार....!!"
"साला,बार-बार बोलता है गलती नहीं होगी-गलती नहीं होगी.....और बार-बार गलती भी करता है....अबे साला आदमी है कि भकड़मल्लू...!!"
"हुजुर आदमी नहीं हूँ...बस गरीब हूँ.....!!गरीब में और आदमी में क्या अन्तर होता है....सो तो सरकार ही जानती है...!!"
"हूँ....!!जरुरत से ज्यादा अक्ल गई है तुझे,साले तेरी खातिर ही हम सब सब मरते हैं...तेरे लिए ही तो क्या-क्या करते हैं....तब ही तो अपना कुछ कर पाते हैं....!!"
"दुरुस्त फ़रमाया सरकार....!!हमारे जीने पे-हमारे मरने पे ही आपकी जिन्दगी निर्भर है हुजुर-आला....!!"
"ठीक है-ठीक है.....इतनी सारी बातें तुने सच-सच कही....अब एक आखिरी बात भी सच बोल दे !!"
"सरकार,आप फरमाएं....हमें तो सिर्फ़ उसकी कापी करनी है....कहिये हुजुर...!!"
"तो बोल भारत माता की जय.....भारत माता की जय...!!"
"हुजुर,ये तो मैं नहीं बोलूँगा...!!"
"अबे क्यूँ-क्यूँ.....!!??"
"हुजुर हम तो मजूर लोग हैं.....आपका कहा हुआ...आपका बताया हुआ सच बोलते हैं.....इससे आप भी खुश हो जाते है,और हमारी आन का भी कुछ नहीं बिगड़ता....मगर इससे ज्यादा सच बोले को ना कहिये सरकार !!"
"अबे बोलता है कि नहीं ??"
"नहीं हुजुर....!!"
"अबे बोल....!!"
"नहीं हुजुर...!!"
"बोल.....!!"
"नहीं हुजुर.....!!
"तो ले,ये ले लात खा ...!!"
अबकी मजदूर उठता है.....अपनी लाठी उठाता है.....और अफसर को दे लाठी-दे लाठी....धुनना शुरू कर देता है ......लाठी के बेरहम प्रहार से अफसर अधमरा हो जाता है......अपनी लाठी उठाये मजदूर यह गाते हुए चल देता है
"बन्दे-मातरम्-बन्दे मातरम्.......!!"
दृश्य का पटाक्षेप होता है......और लेखक इस दृश्य के साकार होने की कल्पना में डूब जाता है.....!!