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बुधवार, 29 अप्रैल 2009

कविता - व्यंग्य

नेता

राजनीति के भंवर मे सब नेता बन गये हैं
इस देश के निर्माता अभिनेता बन गये हैं
महिलाओं की आज़ादी के भाषण कूटते हैं
चौरास्ते पर उनकी इज्जत लूटते हैं
गरीबों की भलाई के लिये क्या नही करते
उनके नाम की ग्रांट से अपनी जेबें भरते
भ्रष्टाचार खत्म करने की कसमे खाते हैं
बेईमानी की गंगा मे दिन रात नहाते हैं
जो सच्चा इनसान हो उससे तो कतरातेहैं
वो काम कराने जाये तो उसे डराते है
काम कराना हो इनसे तो नेतगिरी दिखलाओ
विपक्षी की निन्दा करो इस नेता के गुण गाओ