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सोमवार, 18 मई 2009

महादेवी वर्मा की जन्मस्थली बेचने का प्रयास

कहते हैं कि साहित्य समाज को रास्ता दिखाता है। जिस समाज का साहित्य और संस्कृति नहीं होता, वह मृतप्राय है। यही कारण है कि विभिन्न साहित्यकारों से जुड़ी चीजों को धरोहर रूप में सुरक्षित रखा जाता है, ताकि आगामी पीढ़ियां जान सकें कि अमुक साहित्यकार ने किन परिस्थितियों और वातावरण के मध्य सृजन कार्य किया। यह एक तरह से साहित्यकारों के प्रति समाज की श्रद्धांजलि भी है। ऐसे में किसी प्रसिद्ध साहित्यकार की जन्म स्थली को बेचे जाने का प्रयास किसी भी रूप में उचित नहीं कहा जा सकता। वो भी तब जब वह साहित्यकार स्वयं महादेवी वर्मा हों। साहित्य ही नहीं साहित्य से परे...

बड़ा कठिन हैटूटते परिवारों में रिश्तों की डोर थामें रखना ,नहीं रही कोई अहमियत परिवारों से जुड़े पवित्र बंधन की ,आलीशान मकानों के बीच छिप सा गया है घर ,किसी ईट पत्थर की चुनाई में दरक रहा है विश्वास ,अपनी छत के नीचे अब दीवारों से नहीं टकराते अनुभव बुजुर्गों के,बच्चों को नहीं सुनने मिलती ,दादी नानी की कहानिया ,नहीं होती शरारत देवर भाभी के बीच , मुंह फेर लेते हैं भाई भी नजरटकराने पर ,ये सच है जर , जोरू , जमीन की ,।जंग छिड़ी है चहुंओर लेकिन अस्तित्व बचाने , मजबूत रखनी होगी रिश्तों की डोर ।ByMridul purohit, son of shantinath purohit, 6/129, khandu...

अन्तर्राष्ट्रीय हाईपर्टेन्शन डे-व्यंग [निर्मला जी ]

अब क्या कहें एक और दिन आ गया मनाने के लिये इन्ट्र्नैशनल हाईपरटेन्शन डे मै ये तो नही जानती कि इसे कैसे ? और किस को मनाना चाहिये ? मगर एक बात की खुशी है किमुझे इसे मनाने मे कोई ऐतराज या परेशानी नहि है आप लोग भी परेशान मत होईये हमरे देश मे आजकल ये दिन मनाने के लिये माहौल भी है और लोग भी हैं जिन्हें हाईपरटेन्शन हो गयी है उनमें कुछ तो वो जो प्रधानमंन्त्री बनने के सपने देख रहे थे ,पर सपने सपने ही रह गये और कुछ वो जो हार गये कुछ जो बन गये उन्हे आगे की चिन्ता सता रही है के मन्त्रीपद मिलेगा कि नहीं जो वर्कर्स हैं वो भी जोड तोड मे लगे हैं कि अब कौन...