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गुरुवार, 3 सितंबर 2009

हिन्दी साहित्य मैं न पढ़ूगा ????? बोलो

हिन्दी साहित्य से लोगों की अरुचि दिनों दिन तेजी से बढ़ती जा रही है। बच्चों को आज साहित्य से वंचित रहना पङता है और कमोवेश जो शिक्षा के माध्यम से दिया जाता है वह ना काफी है। जब कोई युवा पीढी का नागरिक यह पूछता है" कि मैथिलीशरण गुप्त या सुमित्रा नंदन पंत कौन हैं? तो इन राष्ट्रकवियों पर एक सवालिया निशान सा लगता है । कहीं न कहीं साहित्य में महान कवियों को आज भुलाया जा रहा है । जो अपेक्षा आज मीडिया , सरकार व पढ़े लिखे वयक्ति से की जाती है वह उस पर खरे नहीं उतरते हैं । थोड़ा पीछे की बात की जा तो कमलेश्वर जी का निधन हुआ था । देश ने महान साहित्यकार, आलोचक...

हिन्दी पखवाड़े में आज का व्यक्तित्व " फादर कामिल बुल्के "

हिन्दी पखवाड़े को ध्यान में रखते हुए हिन्दी साहित्य मंच नें 14 सितंबर तक साहित्य से जुड़े हुए लोगों के महान व्यक्तियों के बारे में एक श्रृंखला की शुरूआत की है । जिसमें भारत और विदेश में महान लोगों के जीवन पर एक आलेख प्रस्तुत किया जायेगा । आज की पहली कड़ी में हम " फादर कामिल बुल्के " के बारे में जानकारी दे रहें । उम्मीद है कि आपको हमारा प्रयास पसंद आयेगा ।भारत वर्ष 1सितंबर से 14 सितंबर तक हिन्दी पखवाड़ा मना रहा है । 14 सितंबर का दिन हिन्दी दिवस के रूप में मनाया जाता है । सोये हुए हिन्दी प्रेमियों को जगाने का काम करता है हिन्दी दिवस । भारत वर्ष...

"लौट आये वो"

वक्त बीतता गया उन लम्हों के साथ,जिसमें थी मेरी तन्हाई,अन सुलझे हुए मुद्दों परआज नहीं होती है लडाई,सोचता था ,चाहता था,जो कुछ भी मैं,वो सब कुछ मिल गया,परअब भी कसक उठती जहन में,किस बात से थी रूसवाई,सब बदला नहीं आज भी,जो साथ हम आज भी,बुनता हूँ यादों का ताना बानाकुछ अकेले में,वो प्यार या थी बेवफाई,कभी-कभी रो लेता मैं चुप होकरआंसू जिसे मोती कहती थी वो,अब आते नहीं क्यों ?मालूम नहीं ,जो कुछ हुआ अच्छा हुआ,हम साथ अब,शायद यह थी-प्यार की आजमाइश,कहना भी डर डर के,हर लफ्ज को,फिर से न आये ये ,रूसवाई।, प्रस्तुत कर्ता(नी...