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बुधवार, 3 मार्च 2010

नारी मन की राह---------[कविता]-------नीलिमा गर्ग

राहउत्ताल तरंगों को देखकरनही मिलतीसागर की गहराई की थाहशांत नजरों को देखकरनही मिलतीनारी मन की राहटुकडों में जीती जिन्दगीपत्नी ,प्रेमिका ,मां ,अपना अक्स निहारतीकितनी है तनहासूरज से धुप चुराकरसबकी राहें रोशन करतीअपने उदास अंधेरों कोमन की तहों में रखतीसरल सहज रूप को देखकरनही मिलतीनारी मन की ...