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मंगलवार, 2 फ़रवरी 2010

संतुलन ---- अगीत ------- [डा श्याम गुप्त ]

विकास हेतु,
संसाधन दोहन की ना समझ होड़ ,
अति शोषण की अंधी दौड़;
प्रकृति का संतुलन देती है बिगाड़,
विकल हो जाते हैं नदी सागर पहाड़,
नियामक व्यवस्था तभी तो करती है यह जुगाड़;
चेतावनी देती है,
सुनामी बनाकर सब कुछ देती है उजाड़ ,
करने को अपना संतुलन ,सुधार