न कोई मजहब है मेरा न कोई भगवान हैमैं तो बस इन्सान हूँ इंसानियत मेरी पहचान है..न कभी मंदिर गया मैंन कभी गुरूद्वारे में मैं तो बस देखता हूँ सबमें ही भगवान है .न किसी से इर्ष्या हो न किसी से बैर हो मैं तो बस ये चाहता हूँ सबमें ख़ुशी और प्रेम हो पढता हूँ मैं खबर शहर कत्लेआम की हो दुखी नम आँखों सेक्या खुदा , क्या राम है..आज मैं मैं कर रहा कल खाक में मिल जाऊंगा सांसे टूट जाएगी एक दिनक्या साथ मेरे जायेगा ...आओ हम ये दूरी मिटा दें न कोई हो दुर्भावना राम पूजे मुसलमान हिन्दू खुदा...